Saturday, December 18, 2010

आँखों ने कुछ सपने देखे ,कदम बढे सच करने को ||

आँखों  ने कुछ सपने देखे
कदम बढे सच करने को
सतत इन्द्रियां कहती रहती
बढ़ने को ,कभी रुकने को
असमंजस के चक्र व्यूह हैं
मिले रास्ते धुंधले से ,
एकाकी बढ़ता जाता हूँ
नित्य  ,नया कुछ करने को |||

Monday, December 13, 2010

बेरोजगार

जब देखता हूँ तुम्हारा दर्द ,तुम्हारी परेशानियाँ ,
मेरी आँखे भर आती हैं  माँ !
चाहता हूँ मिटा दूं सारा दर्द ,
ले लूँ तुम्हारे सारे गम ,
पर ले नहीं पाता बस देखता हूँ और घुटता हूँ रात दिन !
कोसता हूँ अपने आप को क्यों नहीं करता कुछ माँ के लिए ,
कभी कभी सोचता हूँ कि ये सर काट के तुम्हारे कदमों में रख दूं ,
पर जानता हूँ इस से तुम्हारा  दर्द और बढ़ जाएगा !
जिन आँखों में कभी सपने थे ,
आज सिर्फ आश है बुझी हुई कि शायद इन बूढ़े कंधो को बेटा सहारा दे दे , आज , कल या परसों !
पढ़ा लिखा सब कुछ किया ,
पर इस से बढ़ कर भी कुछ चाहिए समाज को ,
जाति,धर्म ,जिनसे आज थोड़ा नीचे हो गया है कर्म !
लाचार हूँ ,क्या करुं,बेकार हूँ ,
माँ बाप के सपनों को शायद ही पूरा कर सकूं ,बेरोजगार हूँ !!!   

Wednesday, December 8, 2010

क्योंकि माँ ,माँ होती है

हाँ मैंने देखी है ,माँ के चेहरे की  झुर्रियां
अब मुझे गुलाबी चेहरे अच्छे नहीं लगते
मुझे याद हैं माँ की आँखों में आंसू
जिनमे कुछ था तो ,सिर्फ ममता थी प्यार था
ऐसा प्यार जो परिस्थितियों का मोहताज नहीं
मैं माँ को याद रखूँ या न रखूँ
मै माँ के लिए कुछ करुं या न करुं
लेकिन माँ की  आँखों में प्यार हमेशा रहेगा
इस पूरी दुनिया में वही ऐसा प्यार है
जो बाज़ार में बिकता नहीं
जिसे खरीदने की जरूरत नहीं
क्योंकि  माँ मुझे तब भी प्यार करती थी
जब मै कुछ भी नहीं था
और अब भी करती है जब मै बहुत बड़ा हो गया हूँ
मुझे भागना होगा तो मै इस प्यार के पीछे भागूंगा 
जो अथाह है ,सागर है
ये प्यार कभी नहीं घटने वाला
मै जानता हूँ
क्योंकि माँ ,माँ होती है
जिसकी जगह कोई नहीं ले सकता !

Monday, December 6, 2010

कुछ मुक्तक

तेरा आके जाना,

है झूठा जमाना

सताता है मुझको,

ये खाली पैमाना ||


बनावट की बातें

खाली ,काली रातें

रुलाती हैं मुझको

 उनकी फरियादें||



कोई सपने संजोता है ,कोई दिन रात रोता है |

कोई महलों में होता है ,कोई फुटपात धोता है |

मेरे मालिक ,ये कैसा है फर्क तेरी बनावट का|

 जो पत्थर तोड़ता है शाम तक ,भूँखा सोता है ||

Monday, November 29, 2010

मै राहों में चला था दो कदम

मै राहों में चला था दो कदम
पीर बढती गयी
घटने लगा मेरा अहम्
मेरा भरम
चुभे कांटे
पड़े छाले
दूर मंजिल खड़ी है
दूर रहने पर अड़ी है
मुद्दतों बाद अपने आप
पर आई शर्म
मै राहों में चला था दो कदम

Sunday, November 28, 2010

मै राहों में चला था दो कदम

मै राहों में चला था दो कदम
स्वप्न बढ़ते गए
बढ़ता गया मेरा भरम
दिखे कंकड़ मुझे मोती
मुझे मोती दिखे कांटे
जो मैंने खूब बांटे
मुझे देता रहा धोखे
खुद मेरा अहम
मै राहों में चला था दो कदम

Sunday, September 26, 2010

हरामखोरी की कोई हद नहीं होती

पिछले ३-४ महीनो से अखबार में रोज कुछ न कुछ पढने को मिल रहा है राष्ट्रीयमंडल खेलो के बारें में और इतना कुछ पढने और देखने के बाद हर हिन्दुस्तानी को पता चल गया होगा की  आज कल यहाँ  आँख में धूल नहीं बल्कि धूल में आँख झोंकी जाती है ,
यहाँ दाल में काला नहीं बल्कि काले में दाल होती है  | तीन दिन पहले अखबार में देखा की खिलाडियों की  ठहरने  की जगह पर काफी गन्दगी है ,गन्दगी को साफ़ करने के बजाय ये कहा जा रहा है की  हमारी गन्दगी / सफाई  का लेवल इतना ही  है उनका लेवल और अच्छा होगा ,कुछ लोग ये भी कह रहें हैं जब सारे हिन्दुस्तान में गन्दगी है तो वहां  कैसे सफाई होगी, जितने करोड़ इन खेलो के लिए आवंटित किये गए हैं उतने में दिल्ली ही नहीं शायद सारे देश कि गन्दगी साफ़ की  जा सकती थी | कल संसद में प्रधान मंत्री जी ने कुछ गुस्सा जाहिर किया दिल्ली सरकार  पर और  राष्ट्रीयमंडल खेलो की कमेटी पर, इसके  बावजूद आज अखबार के मुख्य पृष्ठ पर खबर है " " बैठते ही टूट गया अखिल का बेड " "| हमारे देश के कुछ महान लोगों ने अपने अपने कृत्यों से ये साबित कर दिया है की "हरामखोरी की  कोई हद नहीं होती "|

Friday, September 24, 2010

पैसे का तेज

[ तेज की  माँ अचानक बीमार पड़ गयी है , अस्पताल में है | डॉक्टर ने कहा है कि ये इंजेक्सन  जल्दी से लेके आओ तो शायद मै कुछ कर सकूं | तेज यहाँ अपनी माँ के साथ रहता है उसके पिता जी मुंबई  में हैं | रात के एक बज रहें हैं ,सड़क सूनसान है सिर्फ गार्ड के डंडे पटकने कि आवाज़ सुनाई दे रही है  |सड़क पर तेज अकेला जल्दी जल्दी चलता जा रहा है पसीने से लथपथ | ]

( अचानक दो पुलिस वाले मोटर साइकिल से तेज स्पीड में ,तेज के ठीक सामने आकर रुकते हैं )

पहला पुलिस वाला : ऐ  लड़के इतनी रात को कहाँ घूम रहा है ? ये नैनीताल नहीं है यहां इतनी रात को ऐसे नहीं घूम सकते ?

तेज : सर ,माँ हॉस्पिटल में है ,दवा लेनी है |

पहला पुलिस वाला : तो तू इतनी रात को दवा लेगा , दिन में क्यों नहीं ली ?

तेज : सर ,माँ एक घंटे पहले  बीमार हुई है , मुझे  जाने दीजिये मुझे इंजेक्सन जल्दी पहुचाना  है |

दूसरा पुलिस वाला (लडखडाती आवाज़ में ): साले , तुझे बहुत जल्दी है जाने की | हम फालतू हैं क्या जो ऐसे ही घूम रहें हैं | पता है आज कल यहाँ गाड़ियाँ चोरी हो रही हैं , बोल आज कौन सी गाडी चुराने आया है|

तेज : सर , मै चोर नहीं हूँ |
दूसरा पुलिस वाला: चोर के मुह पर नहीं लिखा होता की  वो चोर है ,तेरे पास कोई पहचान पत्र है |

तेज : (डरते हुए )नहीं ,पर ये डॉक्टर का परचा है |

दूसरा पुलिस वाला: इसका मै क्या करुं | चल तुझे तो अब थाने चलना पड़ेगा वही पता चलेगा तू चोर है की  क्या  है |

तेज : सर ,आप मेरे साथ चलो अस्पताल तक चल के देख लो , मेरी माँ है वहां पर |

दूसरा पुलिस वाला: अरे अस्पताल जाके क्या करेंगे ,उसके पास भी  पहचान पत्र नहीं होगा तो उसे भी ले जाना पड़ेगा थाने |

तेज :(रोते हुए ) सर, मुझे जाने दो ,मेरी माँ  मर जायेगी मुझे  जल्दी इंजेक्सन पहुचाना   है   |

दूसरा पुलिस वाला(पहले पुलिस वाले से ): अरे यार इसको गाडी में बिठा अब थाने में ही फैसला होगा |

पहला पुलिस वाला (तेज को खीचते हुए ):चल गाड़ी में |

तेज : सर जाने दो मुझे ,यहीं  समझ लो जो भी समझना है |

पहला पुलिस वाला: क्या समझाएगा ,इधर आ क्या समझाएगा तू , बता |

[तेज ने जेब से १०० रुपये निकाल  कर दिए ]

पहला पुलिस वाला  : पैसा देता है पुलिस को ,वो भी  १०० रुपया देता है ,चल तू तो थाने चल |

[तेज ने १०० रुपये और दिए ]

दूसरा  पुलिस वाला: चल दवा  खरीद ले हम तुझे  हॉस्पिटल तक छोड़  देते हैं|

तेज : जी ,सर |

Tuesday, September 21, 2010

रिश्ते

एक बार फिर उठा ,आँखों में लपटे लिए हुए ,सोचा कुछ न कुछ तो जला के ही छोडूंगा !
माटी के ढेर में पटे हुए रिश्ते ,अमावश की रात जैसी ये तन्हाई , और भी बहुत कुछ जो इन सितारों की तरह गिना नहीं जा सकता !
माटी की परते  निकालता चला गया रिश्ते ढूढने के लिए ,
परत दर परत कुछ न कुछ मिलता गया ,झूठ ,फरेब,लालच ,
सब देखता गया सोचा हो सकता है इन्ही में कही रिश्ते भी छिपे हों,
मिली इर्ष्या,कड़वाहट और इन सबके नीचे मिली  तन्हाई!
मैंने सोचा जलाऊंगा जरूर रिश्ते न सही तन्हाई ही , 
और फिर अँधेरा और गहरा अँधेरा ,
लपटे बुझने लगीं ,
मै फिर भी चलता गया!
अब लपटे बुझ चुकी थीं ,
और सामने था सिर्फ अँधेरा ,
मै और आगे गया ,
अब मुझे ठण्ड महसूस होने लगी ,
चारो तरफ बर्फ ही बर्फ ,
और मै परिस्थितियों की बर्फ में अकड़ा खड़ा था !
न आग थी ,न उजाला ,
कुछ था तो बस मेरा शरीर ,अँधेरा ,ठण्ड और अकड़न !! 

Thursday, August 26, 2010

शायद हम जिन्दा हैं !

रास्ते पर खून ही खून ,गहरा लाल
बह रहा है !
मै एक  कोने में खड़ा हूँ ,
और मैंने अपनी आँखे बंद कर लीं!
अपने आप को समझाया ,ये तुम्हारा नहीं है लोगो का है !
दुबारा आँखे खोलीं ,
लाशें ,मांस के लोथड़े ,हड्डियाँ सब बह रहें हैं ,
कुछ कुत्ते हैं जो बहे जा रहें हैं फिर भी हड्डियों के लिए लड़ रहें हैं !
मैंने दुबारा आँखे बंद कर लीं ,
और अपने आप को समझाया ये तुम नहीं हो ,
तुम तो अभी जिन्दा हो !
चीख़ने, चिल्लाने की आवाजें सुनाई दे रही हैं,
और तेज होती जा रही हैं ,मैंने आँखे बंद कर रखी हैं,
कुछ मेरी तरफ आ रहा है ,मैंने अब भी आँखे नहीं खोलीं ,
कुछ मुझे नोच रहा है ,मैंने आँखे नहीं खोलीं ,
शायद मेरा भी खून बह रहा है ,मैंने आँखे नहीं खोलीं ,
 खून बह रहा है ,
 पर आँखे बंद हैं ,
शायद हम जिन्दा हैं !

Wednesday, August 25, 2010

डंडे के हैं रूप अनेक , इसके आगे मत्था टेक ||

वैसे तो डंडे के कई रूप हैं जो हर आदमी को दिखते हैं  जैसे गाँव के लोग इसे लाठी कहते हैं और बताते हैं कि ये डंडे से बड़ी और मजबूत होती है, शहरी  इसे बेंत कहते हैं  जो थोड़ा देखने में अच्छा और चमकदार होता है मगर मै इसे डंडा  ही कहूँगा |

डंडे के रूप भी बहुत हैं और काम भी | 
यही डंडा जब अध्यापक के हाथ में आता  है तो छड़ी बन जाता है और न जाने कितने बच्चों के भविष्य बना देता है |माँ बाप के हाथ में हो तो भूत ,भविष्य ,वर्तमान सब सुधार देता है ये तो बात हुई सुधारने की |
बुढ़ापे में हर किसी  को  सहारे कि जरूरत पड़ती है, बच्चे सहारा  दे या न दे ,ये डंडा हमेशा तैयार रहता है |
जादू  कि छड़ी के बारे में तो हम सबने सुना है यही डंडा जब पुलिस के हाथ में आ जाता  है तो बन जाता है जादू की छड़ी -
डंडा     पटक , जो   चाहे झटक |
इसी डंडे कि बदौलत आज हर एक देश का  झंडा खड़ा है,
बात  सम्मान कि हो या अपमान कि ये डंडा  हमेशा मौजूद होता है| 

डंडा अनंत ,डंडा कथा अनंता |

इसीलिए कहता हूँ - डंडे के हैं रूप अनेक , इसके आगे मत्था टेक |

















 






Tuesday, August 24, 2010

आम आदमी

( एक आम आदमी सरकारी अस्पताल में घंटों लाइन लगाने के बाद आखिरकार डॉक्टर तक पहुँचता है  )

डॉक्टर : कुछ देर रुको ,मै अभी आता हूँ मेरे घर पर कुछ रिश्तेदार आयें हैं |

आम आदमी : साहब, मै कुछ देर और रुका तो शायद आप को दिखाने  कि जरूरत ही न रहें |

डॉक्टर (गुस्साते हुए ) :फिर तो और अच्छा है ,तुम्हारा भी वक़्त बचेगा और मेरा भी | जल्दी बताओ क्या परेशानी  है तुम्हे ?

आम आदमी : कमजोरी  रहती है ,चक्कर आते हैं  ,बदन दर्द करता है ,दो दिन से पेट भी ख़राब है ,कभी कभी सर में भी दर्द  होता है और |

(बीच में टोकते हुए ) डॉक्टर :  मैंने तुम से बीमारियों के नाम नहीं पूंछे हैं | क्या करते हो तुम  ?

आम आदमी : साहब आम आदमी हूँ  ,आज कल बेरोजगार हूँ  |

डॉक्टर : फिर ठीक है ,संभव है |
            मै कुछ विटामिन्स कि दवाइयां लिख देता हूँ जाके ले लेना और दोबारा मत आना
            जब भी ये परेशानी  हो तो यही दवा  ले लेना तुम जैसे लोग ही यहाँ बार बार आते
            रहते हैं |
आम आदमी : साहब ये दवा  कितने तक मिल जायेगी  |

डॉक्टर : एक खुराक १०० रुपये |

आम आदमी : साहब ,दो दिन से खाना नहीं खाया ,बीवी बीमार थी महीने भर से उसकी दवा चल रही है, एक नौकरी थी वो भी छूट  गयी  मै ये दवा कहाँ से खरीदूंगा |

डॉक्टर : तो अब तुम क्या चाहते हो?  सरकार  मुफ्त इलाज  देती है , मुफ्त दवा देती है अब विटामिन्स की  गोलियां भी बांटे     |

आम आदमी : साहब , सरकार की  बात मत करो ,आप बड़े लोग हैं आपको दिया होगा सरकार ने और आपने सरकार को |
                  हमें तो सरकार ने कुछ दिया है तो भूंख,बेरोजगारी और मंहगाई  |
                  और भाषण जो अब आप दे रहें हैं  |
 अगर आप कुछ दे सकते हैं तो ऐसी दवा दीजिये की  मुझे हफ्तों -  महीनों भूंख न लगे और मै कुछ काम कर सकूं अपने लिए और अपने परिवार के लिए |

डॉक्टर : मै मर्ज का इलाज़ करता हूँ, तुम जा सकते हो |

आम आदमी : हाँ जाता  हूँ ,शुक्र है ,आम आदमी के लिए अभी तक भगवान् तो हैं |

    
    

Sunday, August 22, 2010

नेता की आँखों में आँसूं

चमचा : नेता जी ,यह चमत्कार है या अत्याचार आपकी आँखों में आँसूं ,ऐसी कौन सी वजह है जिस से  आप की  आँखों में आँसूं आ गए  ?
आप बताइए हम भी  आप के साथ  चिल्ला चिल्ला कर  रोयेंगे |

पी .ए. : नेता जी , पंजाब में बाढ़ में आयी आप ने सारा दर्द सीने में दफन कर लिया  और किसी को कानो  कान खबर भी  नहीं होने दी की  आपको कितना कष्ट   है, लेह में बादल फटा आपने अपना दिल पत्थर का बना लिया और सारा झटका सह गए ,पड़ोसी मुल्क में बाढ़ आ गयी आपने वहां भी  अपने साहस  का परिचय दिया ,आप खामोश रहे   पर आज आपकी आँखों में आँसूं क्यों हैं, हमें बताइए ,कौन सी इतनी बड़ी त्रासदी हो  गयी जहाँ का पानी आपकी आँखों तक पहुँच गया | 

नेता जी : अगर मुझे पता होता तो मै जरूर बताता , मुझे तो खुद नहीं पता ये आँसूं  आखिर आये कहाँ से |

 पी .ए . : नेता जी ,धीरे बोलिए अगर मीडिया को पता चल गया तो हंगामा हो जाएगा |

चमचा : नेता जी , आप क्या जवाब देंगे ? आप तो जिम्मेदार नेता हैं हर सवाल का  जवाब  दिया है आपने आज तक | मेरे खयाल से हमें जांच कमेटी बैठा देनी  चाहिए और पता लगाना चाहिए  कि ये आँसूं आये कहाँ से ?

नेता जी : तो फिर बैठा दो जांच कमेटी, पी .ए  . !

पी . ए  . :नेता जी जांच कमेटी तो बैठा दी जाए पर इसका विश्वास    कैसे किया जाए कि फैसला आ ही जाएगा और आ भी गया तो कितने परसेंट सही होगा !

नेता जी : तो फिर क्या किया जाए ?

पी . ए . :  इस शहर  के सबसे अच्छे "आई स्पेस्लिस्ट  "को बुलातें हैं और पता लगाते हैं की आँसूं कहाँ से आये  |
चमचा  : मै अभी बुला के लाता  हूँ , नेता जी |

( कुछ समय बाद )

डॉक्टर : नेता जी ,आँखें खोलिए मै अभी देख कर  बताता हूँ  ,वजह |

पी. ए . : क्या कुछ दिखा ?

डॉक्टर : हाँ |

चमचा : तो बताओ क्या दिख रहा है ?
 |
डॉक्टर : टूटी फूटी  सडकें ,सड़कों में गड्ढे , गड्ढों में पानी और ....|

चमचा : रुको ,रुको यही पानी था नेता जी की आँखों में |

डॉक्टर : चुप ! डॉक्टर मै हूँ या तू है गड्ढों की  गहराई ज्यादा है और पानी कम है  पानी बाहर नहीं आ सकता |

पी. ए .: डॉक्टर साब , आप आगे देखो !

डॉक्टर  : ह्म्म्म ,गड्ढों में पानी है , पानी में तो सोने की  मछलियाँ  हैं |

नेता जी : रुको डॉक्टर ,दूसरा एरिया देखो ,उधर से पानी नहीं आया है,खामखा वक़्त मत बर्बाद करो  |

डॉक्टर : अच्छा  नेता जी ,  टूटे हुए पुल  ,बाँध और........ |

नेता   जी : ये फालतू  की  चीजें मत बताओ कुछ ख़ास दिखे तो बताओ नहीं तो जाओ |

डॉक्टर : जी नेता जी ,देखता हूँ ,मिल गया ,मिल गया |

पी. ए . : बताओ फिर जल्दी बताओ ,क्या वजह हैं आँसूं  की |

डॉक्टर : जनता , जो सड़कों  पर पड़े  रोड़े की  तरह  इधर से उधर भाग रही है ,कभी मंहगाई से लड़ने ,कभी भूख से लड़ने  ,कभी त्रासदी कि वजह से और...|

नेता  जी : पी. ए . ,इसे ले जाओ इसे कुछ नहीं पता |

डॉक्टर : नेता जी पूरी बात  तो  जान  लीजिये ,जनता किन किन  कारणों से  दौड़ -भाग रही है ये आप को पता  है और वही रोड़े की तरह आपकी  आँखों में चुभ रही  हैं और पानी .......|

नेता जी : पी. ए ., इसको ले जाओ यहाँ से और देखना ये दुबारा किसी को देखने लायक न रहें |

पी. ए  . : जी नेता जी |

चमचा : अब आप क्या जवाब देंगे मीडिया में |

नेता जी (हंसते  हुए ): आज तक जितने सवालों का जवाब दिया ,किसी का जवाब मुझे पता था क्या ?

चमचा (हंसते  हुए):जी नेता जी |










Tuesday, August 17, 2010

और फिर मै सोचता हूँ कि यही तो है जीने कि वजह और लग जाता हूँ, भविष्य को पकड़ने में ||

जब भी मै बंद करता हूँ अपनी मन कि आँखे |
दूर बहुत दूर मुझे नज़र आता है कुछ ,
कुछ धुंधला सा, चमकदार,सुनहरा,
 रोशनी से  भरपूर ,उजाला और उजाला ,
फिर सब कुछ गायब हो जाता है ,
और मै उदास हो जाता हूँ |
भूत जो घसीटते  घसीटते  चला गया
पर छोड़ गया कुछ रेखाएं मेरे चेहरे पर |
वर्तमान  जो हँसता है मुझे देख कर ,
कभी कभी मजाक भी उड़ाता है मेरा |
भविष्य जो दिखता है उजाले  से भरपूर,
मुझे अपने पास  बुलाता है ,
कहता  है मुझे पकड़ लो
बैठ जाओ मेरे पास नहीं तो मै
भी हंसूंगा वर्तमान कि तरह
और भूत कि तरह कुछ रेखाएं
छोड़ के चला जाऊँगा
फिर दोबारा नहीं आऊंगा |
और फिर मै सोचता हूँ कि यही तो है
जीने कि वजह  और लग जाता हूँ,
भविष्य को पकड़ने में ||

Sunday, August 15, 2010

मेरी आज़ादी की औकात इतनी ही है

चचा : अरे पप्पू हम आज फिर आजाद हो गए क्या ?
पप्पू : नहीं चचा ,आजाद तो हम १५ अगस्त १९४७ को ही  हो गए थे ,अब ६३  साल हो गए .
चचा : ऐसा क्या ,बेटा पता नहीं चला तो कौन कौन आजाद है आज कल ?
पप्पू : वाह,  कैसे कैसे सवाल पूंछते हो , तुम आजाद हो मैं आजाद हूँ हर कोई आजाद है .
चचा : मैं भी आजाद हूँ क्या ,तो फिर मै जो चाहूं वो कर सकता हूँ क्या ?
पप्पू : हाँ ,हर कोई आजाद  है,लेकिन अपनी अपनी औकात है आज़ादी की  सब के लिए !
चचा : तुम्हारे अब्बा कह रहें थे कि कल शाम को कुछ किसान आन्दोलन कर रहें थे उन पर गोली चला दी गयी और कुछ मर भी गए ,और  तुम कह रहें हो की हर कोई आजाद है  ?
पप्पू : अरे चचा ,तुम नहीं समझोगे कुछ लोग ज्यादा आजाद हैं ,कुछ थोड़े कम हैं
ये विज्ञान  की बात है जब कम आजाद लोग ज्यादा आजाद लोगों के प्रभाव में आ जाते हैं तो कम आजाद वालों की आज़ादी नगण्य हो जाती  है ,
आजाद तो हर कोई है ,
वे  गोली चलाने के लिए आजाद हैं तो हम गोली खाने के लिए आजाद हैं,
वे  मंहगाई बढ़ाने के लिए आजाद हैं तो हम मेहनत करने के लिए आजाद हैं,
वे  जेब  भरने के लिए आज़ाद हैं तो हम खाली करने के लिए  आजाद हैं ,
वे  वादे करने के लिए आज़ाद हैं हम इंतज़ार करने के लिए आज़ाद हैं ,
वे  जनता के लिए कुछ भी करने को आज़ाद हैं तो जनता कुछ भी सहने को आजाद है,
अरे बताया था न चचा ,हर कोई अपनी औकात के हिसाब से आजाद है ,
अरे शुक्र मनाओ चचा कि यहाँ अब अंग्रेज नहीं है ,सारे अपने ही हैं ,
और आज़ादी का मजा लेना है तो अपनी आजादी की औकात बढाओ, कैसे भी ,अच्छे काम करो या बुरे
बस औकात बड़ी हो !
और तुम भी तो आजाद हो चच्ची  पर चिल्लाने के लिए,
आज हर कोई ज़स्न   मना रहा है तुम भी मनाओ ,
जाओ चच्ची  पर खूब चिल्लाओ ,अरे आज हम आजाद हुए थे,
लोगों को पता चलना चाहिए ,
क्यों चचा समझ आया  कुछ ?
चचा (हँसते हुए): हाँ बेटा ,मेरी आज़ादी की औकात इतनी ही है !

Saturday, August 14, 2010

मुल्क कि यूँ आजादी से क्या होता है

बापू  के आदर्शों को हम भूल गए
वीर हमारे जाने कितने फांसी पर हैं झूल गए
अगर आज भी रातों को भूखा  बचपन सोता है
तुम ही बताओ मुल्क कि यूँ आजादी से क्या होता है
शरेआम  यहाँ माँ बहनों का चीरहरण अब होता है
कानून आंख पर पट्टी बांधे गहरी नींद में सोता है
अगर आज भी युवा देश का रोजगार को रोता है
 तुम ही बताओ मुल्क कि यूँ आजादी से क्या होता है

Monday, July 26, 2010

सपनों का व्यापार करो

बेचना है तो खुशियाँ बेचो ,नफ़रत छोड़ो ,प्यार करो !
आँसू, दर्द का किस्सा छोड़ो,सपनों का व्यापार करो !!
रिश्तों की कड़वाहट पी लो ,जग में भरा हलाहल पी  लो !
भगवान बनो ,उद्धार करो ,एक बार नहीं सौ बार मरो !!

Thursday, July 22, 2010

बेरोजगार

जब देखता हूँ तुम्हारा दर्द ,तुम्हारी परेशानियाँ ,
मेरी आँखे भर आती हैं  माँ !
चाहता हूँ मिटा दूं सारा दर्द ,
ले लूँ तुम्हारे सारे गम ,
पर ले नहीं पाता बस देखता हूँ और घुटता हूँ रात दिन !
कोसता हूँ अपने आप को क्यों नहीं करता कुछ माँ के लिए ,
कभी कभी सोचता हूँ कि ये सर काट के तुम्हारे कदमों में रख दूं ,
पर जानता हूँ इस से तुम्हारा  दर्द और बढ़ जाएगा !
जिन आँखों में कभी सपने थे ,
आज सिर्फ आश है बुझी हुई कि शायद इन बूढ़े कंधो को बेटा सहारा दे दे , आज , कल या परसों !
पढ़ा लिखा सब कुछ किया ,
पर इस से बढ़ कर भी कुछ चाहिए समाज को ,
जाति,धर्म ,जिनसे आज थोड़ा नीचे हो गया है कर्म !
लाचार हूँ ,क्या करुं,बेकार हूँ ,
माँ बाप के सपनों को शायद ही पूरा कर सकूं ,बेरोजगार हूँ !!!   

भेड़िया

सुनाई दिया गाँव में एक भेड़िया  आया है !
जो पहले डकारता है ,फिर खाता है और फिर गुर्राता है !
पलक झपकते ही गाँव के गाँव चबा जाता है !
लोग कहते है इसका काम काज उल्टा है ,
ये नहीं समझते अब राम राज उल्टा है ,
चारो तरफ दिखता है बस जरा मरा!
कौन पकड़े भेड़िया, कहाँ से आये कटघरा !