जब देखता हूँ तुम्हारा दर्द ,तुम्हारी परेशानियाँ ,
मेरी आँखे भर आती हैं माँ !
चाहता हूँ मिटा दूं सारा दर्द ,
ले लूँ तुम्हारे सारे गम ,
पर ले नहीं पाता बस देखता हूँ और घुटता हूँ रात दिन !
कोसता हूँ अपने आप को क्यों नहीं करता कुछ माँ के लिए ,
कभी कभी सोचता हूँ कि ये सर काट के तुम्हारे कदमों में रख दूं ,
पर जानता हूँ इस से तुम्हारा दर्द और बढ़ जाएगा !
जिन आँखों में कभी सपने थे ,
आज सिर्फ आश है बुझी हुई कि शायद इन बूढ़े कंधो को बेटा सहारा दे दे , आज , कल या परसों !
पढ़ा लिखा सब कुछ किया ,
पर इस से बढ़ कर भी कुछ चाहिए समाज को ,
जाति,धर्म ,जिनसे आज थोड़ा नीचे हो गया है कर्म !
लाचार हूँ ,क्या करुं,बेकार हूँ ,
माँ बाप के सपनों को शायद ही पूरा कर सकूं ,बेरोजगार हूँ !!!
marmik post...
ReplyDeleteasha hi jeevan hai...
nirash na ho , karm karte rahen,safalta jaroor milegi..
karuna se bharpoor ek sachchi kavita.
ReplyDeleteमन की सच्ची अभिव्यक्ति दिल को मर्माहत कर गयी। मेरे पोस्ट पर आपका हार्दिक स्वागत है।
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