Monday, December 6, 2010

कुछ मुक्तक

तेरा आके जाना,

है झूठा जमाना

सताता है मुझको,

ये खाली पैमाना ||


बनावट की बातें

खाली ,काली रातें

रुलाती हैं मुझको

 उनकी फरियादें||



कोई सपने संजोता है ,कोई दिन रात रोता है |

कोई महलों में होता है ,कोई फुटपात धोता है |

मेरे मालिक ,ये कैसा है फर्क तेरी बनावट का|

 जो पत्थर तोड़ता है शाम तक ,भूँखा सोता है ||

3 comments:

  1. मेरे मालिक ,ये कैसा है फर्क तेरी बनावट का|
    जो पत्थर तोड़ता है शाम तक ,भूँखा सोता है ||....bahut badhiyaa....bhoonkha ko bhookha kare to our badhiya hogaa.

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