Saturday, December 18, 2010

आँखों ने कुछ सपने देखे ,कदम बढे सच करने को ||

आँखों  ने कुछ सपने देखे
कदम बढे सच करने को
सतत इन्द्रियां कहती रहती
बढ़ने को ,कभी रुकने को
असमंजस के चक्र व्यूह हैं
मिले रास्ते धुंधले से ,
एकाकी बढ़ता जाता हूँ
नित्य  ,नया कुछ करने को |||

Monday, December 13, 2010

बेरोजगार

जब देखता हूँ तुम्हारा दर्द ,तुम्हारी परेशानियाँ ,
मेरी आँखे भर आती हैं  माँ !
चाहता हूँ मिटा दूं सारा दर्द ,
ले लूँ तुम्हारे सारे गम ,
पर ले नहीं पाता बस देखता हूँ और घुटता हूँ रात दिन !
कोसता हूँ अपने आप को क्यों नहीं करता कुछ माँ के लिए ,
कभी कभी सोचता हूँ कि ये सर काट के तुम्हारे कदमों में रख दूं ,
पर जानता हूँ इस से तुम्हारा  दर्द और बढ़ जाएगा !
जिन आँखों में कभी सपने थे ,
आज सिर्फ आश है बुझी हुई कि शायद इन बूढ़े कंधो को बेटा सहारा दे दे , आज , कल या परसों !
पढ़ा लिखा सब कुछ किया ,
पर इस से बढ़ कर भी कुछ चाहिए समाज को ,
जाति,धर्म ,जिनसे आज थोड़ा नीचे हो गया है कर्म !
लाचार हूँ ,क्या करुं,बेकार हूँ ,
माँ बाप के सपनों को शायद ही पूरा कर सकूं ,बेरोजगार हूँ !!!   

Wednesday, December 8, 2010

क्योंकि माँ ,माँ होती है

हाँ मैंने देखी है ,माँ के चेहरे की  झुर्रियां
अब मुझे गुलाबी चेहरे अच्छे नहीं लगते
मुझे याद हैं माँ की आँखों में आंसू
जिनमे कुछ था तो ,सिर्फ ममता थी प्यार था
ऐसा प्यार जो परिस्थितियों का मोहताज नहीं
मैं माँ को याद रखूँ या न रखूँ
मै माँ के लिए कुछ करुं या न करुं
लेकिन माँ की  आँखों में प्यार हमेशा रहेगा
इस पूरी दुनिया में वही ऐसा प्यार है
जो बाज़ार में बिकता नहीं
जिसे खरीदने की जरूरत नहीं
क्योंकि  माँ मुझे तब भी प्यार करती थी
जब मै कुछ भी नहीं था
और अब भी करती है जब मै बहुत बड़ा हो गया हूँ
मुझे भागना होगा तो मै इस प्यार के पीछे भागूंगा 
जो अथाह है ,सागर है
ये प्यार कभी नहीं घटने वाला
मै जानता हूँ
क्योंकि माँ ,माँ होती है
जिसकी जगह कोई नहीं ले सकता !

Monday, December 6, 2010

कुछ मुक्तक

तेरा आके जाना,

है झूठा जमाना

सताता है मुझको,

ये खाली पैमाना ||


बनावट की बातें

खाली ,काली रातें

रुलाती हैं मुझको

 उनकी फरियादें||



कोई सपने संजोता है ,कोई दिन रात रोता है |

कोई महलों में होता है ,कोई फुटपात धोता है |

मेरे मालिक ,ये कैसा है फर्क तेरी बनावट का|

 जो पत्थर तोड़ता है शाम तक ,भूँखा सोता है ||