Wednesday, August 25, 2010

डंडे के हैं रूप अनेक , इसके आगे मत्था टेक ||

वैसे तो डंडे के कई रूप हैं जो हर आदमी को दिखते हैं  जैसे गाँव के लोग इसे लाठी कहते हैं और बताते हैं कि ये डंडे से बड़ी और मजबूत होती है, शहरी  इसे बेंत कहते हैं  जो थोड़ा देखने में अच्छा और चमकदार होता है मगर मै इसे डंडा  ही कहूँगा |

डंडे के रूप भी बहुत हैं और काम भी | 
यही डंडा जब अध्यापक के हाथ में आता  है तो छड़ी बन जाता है और न जाने कितने बच्चों के भविष्य बना देता है |माँ बाप के हाथ में हो तो भूत ,भविष्य ,वर्तमान सब सुधार देता है ये तो बात हुई सुधारने की |
बुढ़ापे में हर किसी  को  सहारे कि जरूरत पड़ती है, बच्चे सहारा  दे या न दे ,ये डंडा हमेशा तैयार रहता है |
जादू  कि छड़ी के बारे में तो हम सबने सुना है यही डंडा जब पुलिस के हाथ में आ जाता  है तो बन जाता है जादू की छड़ी -
डंडा     पटक , जो   चाहे झटक |
इसी डंडे कि बदौलत आज हर एक देश का  झंडा खड़ा है,
बात  सम्मान कि हो या अपमान कि ये डंडा  हमेशा मौजूद होता है| 

डंडा अनंत ,डंडा कथा अनंता |

इसीलिए कहता हूँ - डंडे के हैं रूप अनेक , इसके आगे मत्था टेक |

















 






2 comments:

  1. एक रूप में भी जानता हूँ - हमारे मास्टर साहिब कहते थे .... डंडा पीर है विगड-तिगदे दा... यानि जो बिगड चुके हैं ... उनके लिए डंडा पीर है.

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  2. प्रयास सार्थक हो रहा है

    सुरेन्द्र झंझट

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