मै राहों में चला था दो कदम
पीर बढती गयी
घटने लगा मेरा अहम्
मेरा भरम
चुभे कांटे
पड़े छाले
दूर मंजिल खड़ी है
दूर रहने पर अड़ी है
मुद्दतों बाद अपने आप
पर आई शर्म
मै राहों में चला था दो कदम
मै राहों में चला था दो कदम
स्वप्न बढ़ते गए
बढ़ता गया मेरा भरम
दिखे कंकड़ मुझे मोती
मुझे मोती दिखे कांटे
जो मैंने खूब बांटे
मुझे देता रहा धोखे
खुद मेरा अहम
मै राहों में चला था दो कदम