Monday, November 29, 2010

मै राहों में चला था दो कदम

मै राहों में चला था दो कदम
पीर बढती गयी
घटने लगा मेरा अहम्
मेरा भरम
चुभे कांटे
पड़े छाले
दूर मंजिल खड़ी है
दूर रहने पर अड़ी है
मुद्दतों बाद अपने आप
पर आई शर्म
मै राहों में चला था दो कदम

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