Thursday, August 26, 2010

शायद हम जिन्दा हैं !

रास्ते पर खून ही खून ,गहरा लाल
बह रहा है !
मै एक  कोने में खड़ा हूँ ,
और मैंने अपनी आँखे बंद कर लीं!
अपने आप को समझाया ,ये तुम्हारा नहीं है लोगो का है !
दुबारा आँखे खोलीं ,
लाशें ,मांस के लोथड़े ,हड्डियाँ सब बह रहें हैं ,
कुछ कुत्ते हैं जो बहे जा रहें हैं फिर भी हड्डियों के लिए लड़ रहें हैं !
मैंने दुबारा आँखे बंद कर लीं ,
और अपने आप को समझाया ये तुम नहीं हो ,
तुम तो अभी जिन्दा हो !
चीख़ने, चिल्लाने की आवाजें सुनाई दे रही हैं,
और तेज होती जा रही हैं ,मैंने आँखे बंद कर रखी हैं,
कुछ मेरी तरफ आ रहा है ,मैंने अब भी आँखे नहीं खोलीं ,
कुछ मुझे नोच रहा है ,मैंने आँखे नहीं खोलीं ,
शायद मेरा भी खून बह रहा है ,मैंने आँखे नहीं खोलीं ,
 खून बह रहा है ,
 पर आँखे बंद हैं ,
शायद हम जिन्दा हैं !

4 comments:

  1. सच्चाई को वयां करती अच्छी रचना ,बधाई

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  2. satyapurn...maarmik our daarsanik chitran....bahut badhiya.....aap jinda hain.

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  3. aapne bahut achha likha hai
    y to sachaye hai

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  4. बहुत खूब, सुन्दर रचना..........
    सच यही है की जब तक अपना खून नहीं बहता तब तक आँखें नहीं खुलती......और जब खुलती हैं तो बहुत देर हो जाती है....

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