Friday, August 3, 2012

अन्ना आन्दोलन : क्या खोया क्या पाया


अन्ना जी ने पहला आन्दोलन किया , पहली बार का जोश था  | भारत की जनता को लगा की हाँ ,अब हमें कोई सही नेता मिला है जिसके पीछे अगर हम चलेंगे तो हमें कुछ हासिल होगा ,
मैं  तो जब से जान ने लायक हुआ , तभी से गाँधी जी के विचारो से असहमत था , न ही मेरा कभी ये मान ना था की हमें जो आजादी मिली वो गांधी जी ने  दिलायी , कितने ही हमारे क्रांतिकारियों ने जान दी , सुभाष चन्द्र बोश , भगत सिंह , आजाद और इन में से किसी को अपनी जान की परवाह नहीं थी अगर सायद इन्हें अपनी जान की परवाह होती तो आज हमें ये आजादी ना मिली होती लेकिन हमें गीत सुनाया गया " दे दी  हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल " अगर इन पंक्तियों को हम समझे तो ये यही कह रही हैं की गाँधी जी ने हमें आजादी दिलाई , जिसका मतलब हुआ की अगर भगत सिंह ने अपनी जवानी में असेम्बली में बम फोड़ा , और खुद को गिरफ्तार कराया वो आजादी पाने में सहायक नहीं हुआ , सुभाष चन्द्र बोश जी ने आजाद हिंद फ़ौज बनायीं और देश को खुद के दम पर आजाद कराने  का बीड़ा उठाया उसका आजादी में कोई सहयोग नहीं है |  ये तो हो गयी आजादी की बात जिस पर चर्चा करना बहुत ही दीर्घ विषय है और मैं अपना कद बहुत छोटा समझता हूँ लेकिन मेरे विचार यहीं हैं और हमेशा रहेंगे की आजादी गर किसी की वजह से मिली हैं तो वह हैं  सर्व प्रथम नाम सुभाष चन्द्र बोश , भगत सिंह , आजाद , राम प्रसाद बिस्मिल , और ना जाने कितने हमारे वीर क्रांतिकारी | 

अगर बात किसी को ऐसे नहीं समझ आई तो मैं एक और छोटा और सीधा सा उदा हरंड देता हूँ मान लीजिये एक माँ के दो बेटे हैं ,  माँ के घर पर बाहर से कुछ लोग आये और उन्होंने कब्ज़ा कर लिया एक बेटा है जो दिन रात घर पर बम फेंक रहा है उनको घर से निकलने नहीं दे रहा उनकी नाक में दम कर रखा है और दूसरा भाई है जो की उनसे जाता है रोज बात करता की आप लोग हमारा घर छोड़ के चले जाओ ...
अब कब्ज़ा करने वाले लोग क्या करें उनका जीना दूभर हो चूका है उन्होंने जाने का फैसला कर लिया . आगे मुझे कुछ  समझाने की जरूरत नहीं है 

हमारी संस्कृति भी ऐसी ही है जब जब असुरो का पाप बढ़ा भगवान् ने अस्त्र उठाया , हमारा यह मानना रहा है की अत्याचार करने वाला जितना दोषी है उतना ही दोषी अत्याचार सहने वाला भी है 
क्या  राम , परसुराम और शिव  जी ने हमें जो रास्ता दिखाया वो गलत है अगर वो गलत है तभी ये रास्ता सही हो सकता है , अन्यथा नहीं ..
बात फिर आन्दोलन पर आती है पहले आन्दोलन में अन्ना जी  की टीम ने क्या हासिल किया , लोग कहते हैं की कुछ हासिल किया या नहीं किया उन्होंने हिम्मत तो दिखाई मैं  कहता हूँ जरूर मैं आपकी बात से पूरी तरीके से सहमत हूँ , पहले आन्दोलन में मै भी गया मैंने भी नारे लगाये मेरे अन्दर भी उत्साह था की लगता है अब कुछ होगा परन्तु , राजनीतिज्ञों के वादे , कूटनीति जिनसे आप , हम हर कोई भली भांति परिचित हैं उन्ही में फंस कर अन्ना जी का पहला आन्दोलन ख़त्म हो गया , हमने भी संसद में बिल के पीछे खूब तमाशा देखा , आप लोगों ने भी देखा होगा ..आखिर पहले आन्दोलन से हासिल क्या हुआ पहले आन्दोलन की कवरेज मीडिया ने भी खूब जोर शोर  से की , जिस समय मान नीया सोनिया गाँधी विदेश कुछ ऑपरेशन करने गयी थी , कुछ लोगों का मानना था की वहां कुछ बड़ा ही पक रहा है जिसकी वजह से मीडिया पूरा कवरेज इधर ही दे रही है ..मीडिया कोई आज नहीं बिकी है मीडिया तो हमेशा से बिकी हुई है , हाँ तो बात हो रही थी की कुछ नहीं हासिल हुआ तो क्या हम साथ में खड़े तो हुए,  दिखा तो भारत वासी भी एक जुट हो सकते हैं बात तो सही है , एकता में ही शक्ति है लेकिन आप इस पहलु पर भी ध्यान ने की हम भारत वासी इकट्ठे हुए , हमने खूब कोसिस की लेकिन फिर भी हम वो नहीं पा सके जो हम चाहते थे इसका एक सन्देश ये भी जा सकता है की इतने लोग इकट्ठे होकर भी एक बिल नहीं पास करा पाए जो हम करना चाहते थे हम नहीं करा पाए हम सरकार के आगे झुक गए हम सोनिया गाँधी के आगे झुक गए ..

जिस से उच्च स्थानों पर बैठे लोगों को ये संदेश गया की ये भारत वासी इकट्ठे होकर भी एक बिल नहीं पास करा सकते अगर कल को इन पर कोई बड़ा कदम उठाया जाय तो क्या उसके खिलाफ कुछ कर पायेंगे ...
पहला आन्दोलन गया और अगर खरे खरे सब्दों में कहे तो हमें कुछ भी हासिल नहीं हुआ हमने खुद को एक्सपोज किया की हम बस इतना ही कर सकते हैं बस इतनी ही है हमारी हिम्मत हमारी औकात 
उसके बाद भी छुट पुट आन्दोलन होते रहे कभी एक दिन कभी दो दिन 
फिर हुआ ये अंतिम आन्दोलन जिसमे अन्ना जी और उनकी टीम खुद बैठी और खुद ही ये भी फैसला कर लिया की बस अब हम आन्दोलन से कुछ नहीं कर पायेंगे हमें राजनीति में जाना होगा 
वैसे भी सारे फैसले अन्ना जी और उनकी टीम ही करती आ रही है कब बैठना है हमें जो चाहिए वो मिले या ना मिले अनसन कब तोड़ना है सो अब अनसन भी ख़त्म हुआ और सीधे कहें तो इस बार कांग्रेस ने अन्ना जी को और हमको हमारी औकात दिखा दी की देख लो हमें जो करना है हम वही करेंगे ...

अब अन्ना जी और उनके टीम के लोग राजनीति में जायेंगे अब सवाल ये है तो लोकपाल का क्या होगा आएगा लोकपाल , लोकपाल कब आएगा जब अन्ना जी और उनकी सरकार बनेगी कब बनेगी सरकार अब टाइम लगेगा अभी सिर्फ दो  पार्टिया हैं जो केंद्र में जा सकती हैं एक है भाजपा और एक है कांग्रेस , भाजपा और कांग्रेस तक के  लेवल की पार्टी बनाने में २० से २५ साल तो लग ही जायंगे तब तक , अन्ना जी और उनकी टीम ने मोदी जी को  पहले  ही  कई विभूतियों से नवाज दिया  है जिसका  मतलब है की ये मोदी जी को तो कदापि समर्थन नहीं करेंगे , अब बचा कौन कांग्रेस आगे आप लोग खुद ही समझदार हैं 
तो जो भारत के ५० से ६० % की उम्मीद थी की हो सकता है २०१४ में मोदी जी केंद्र में आयें और गुजरात की तरह पूरे देश में २४ घंटे लाइट रहे , पानी की समस्या ना हो  और भी बहुत कुछ ...... ये उसको भी डुबो देंगे , और उसी कांग्रेस का समर्थन करेंगे जिसने इनके साथ क्या क्या नहीं किया  या तो राजनीति में २० से २५ साल तक अलग रहेंगे ...

अब कुछ लोग अगर मुझे गालियाँ देना चाहते हो तो दे जो मेरे खुद के विचार हैं मैंने वही लिखे हैं और मैं अपने विचारो से सत प्रतिसत सहमत हूँ और सदैव रहूँगा 
अगर आप का रास्ता सही नहीं  है आप परिस्थतियों के अनुसार जवाब नहीं देते हैं सवाल  कुछ दूसरा है आप का जवाब दूसरा है  तो ऐसे ही कुछ भी हासिल  नहीं होने वाला 
अगर जब से आन्दोलन सुरु हुआ और आज जब की हमें पता चल गया की अब आन्दोलन पूरी  तरीके से बुझने  वाला है अगर आम जनता को हमारी भारत माता को कुछ भी हासिल हुआ हो तो मुझे भी बताये 

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

क्या कुछ बदला इस सब से हम सब लोग वाकिफ हैं  रही बात राजनीति की तो राजनीति ने तो अच्छे अच्छों को नहीं बक्शा है 
जो ऊँचा सुनते हैं उन्हें धमाकों की जरूरत होती है माननीय भगत सिंह जी की बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है ! 
कायरता से न कोई क्रांति कभी हुई है न कभी होगी मेरा यही मानना है और सदैव रहेगा !
भारत न तब महत्मा गाँधी के अनसन से  आजाद हुआ था और न आज अनसन से आजाद होगा , हमें भगत सिंह , नेता जी और आजाद चाहिए जिनसे डरकर भले ही यह जन लोकपाल अन्ना की झोली मैं आ गिरता  !

विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत , बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीती !!
इसे याद रखो विनय के लिए ३ दिन ही काफी हैं और नहीं !

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