Thursday, May 17, 2012

"बकरी किसकी" नाटक


[ दरबार सजा है मंत्री , सेनापति , राज वैद्य , और भी कई लोग  राजा  के दरबार में अपनी अपनी गद्दियों पर बैठे हैं दरबान चिल्लाता है ]
"महाराजाओं के महराजा ,दीन  दुखियों के सेवक ,सबके कल्याणकरता महा विनाशक  , सूर वीर महा वीर "
[महाराजा आकर दरवाज़े के पास खड़े हो गए और दरबान को देख रहे हैं की इसका कथन ख़त्म हो तो मैं आगे जाऊं ]
"कभी एक तीर कभी दो तीर कभी तीर ही तीर मिटा देते हैं सबकी पीर ,अपराजेय  अबला  "
[अबला कहने पर महाराज दरबान को देखने लगते हैं ]
"अबलाओं को बना दे सबला "
[महाराज धीरे से ]
"आपकी आज्ञान हो तो हम अन्दर जाएँ "
[दरबान धीरे से ]
"हाँ महराज बस हो गया"
" गिद्ध पुर के राजा श्री मान श्री श्री  "
[महाराजा दरबान को फिर से घूरते हैं ]
"श्री चटुक चम्प चौकान्ना सिंह पधार रहे हैं "
[महराजा पहला कदम बढ़ाते हैं सारे लोग खड़े हो जाते हैं अपनी अपनी जगह पर और अपना अपना सर झुका लेते हैं इतने में ही एक बकरी दौड़ती हुई आती है और महाराज के रास्ते भर में फूलों की तरह लेंडी बिखेरती हुई महराज के राज सिंघासन के बगल में जाकर खड़ी हो जाती है पूरा रास्ता लेडियों से भर जाता है दरबार में हर किसी ने सर झुका रखा है और उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है महराज अपना गला साफ़ करने लगते हैं  ]
"ह्म्हम्हम्ह्म "
[हर कोई सर ऊपर उठाता है, सेनापति , मंत्री सभी दौड़ कर महराज के रास्ते से बकरी की लेंडी साफ़ करने लगते हैं राज्य वैद्य भी साफ़ करने के लिए झुकते हैं इतने में उनके  कुरते के जेब से एक थैली दवाई की गिरती है जो की खुली हुई है दवाई भी काले रंग की ही है और लेंडी भी , राज्य वैद्य की उम्र की काफी हो गयी है और उनकी आँखें भी कमजोर हो गयी हैं वैद्य जी जमीन पर हाथ फेरते हैं और जो कुछ भी उनकी मुट्ठी में आता है सारा कुछ अपनी थैली में भर कर वापस जेब में डाल लेते हैं रास्ता भी साफ़ हो जाता है महराज जाकर अपनी राज गद्दी पर बैठते हैं और मंत्री बकरी को पकड़ कर नीचे सबके बीच में खड़े हो जाते हैं  ]
सेनापति खड़े होते हैं 
"महाराज की जय हो इस बकरी ने जो कुछ किया इसके लिए इसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए "
राज गुरु खड़े होते हैं 
"सेनापति नादानों  जैसी बाते क्यूँ करते हो ये जानवर तो बेजुबान और बिना अक्ल का है लेकिन जो ऊपर वाले ने तुमको अक्ल दी है उसका तो सदुपयोग करो "
[सभी लोग हंस पड़ते हैं ]
राज गुरु 
"महराज हमें बकरी को नहीं इस बकरी के मालिक को सजा देनी चाहिए "
मंत्री 
"राज गुरु ! छमा करे लेकिन ये नहीं हो सकता "
राज गुरु 
"क्यूँ नहीं हो सकता ये बकरी चाहे आपकी ही हो सजा तो मिलेगी ही महराज का इतना घोर अपमान "
मंत्री 
"महराज ! आज हम इस राज दरबार यही पता लगाने के लिए एकत्रित हुए हैं की ये बकरी किसकी है दो भाई हैं लूट मल और खसोट मल उन दोनों का कहना है की ये बकरी उनकी है और हमें फैसला करना है की इस बकरी का वाजिब मालिक कौन है   "
राज गुरु 
"तो दोनों को आधी आधी सजा मिलेगी "
महराज 
"हमारे रहते हुए ऐसा अन्याय नहीं होगा हम पता लगायेंगे की बकरी किसकी है और उसी को पूरी की पूरी सजा दी जायेगी "
दरबान चिल्लाता है 
"लूट और खसोट मल हाजिर हो "
[दोनों धोती और गन्दी बनियान पहने हुए आते हैं ]
लूट मल 
"महराज आप के राज्य में ऐसा अन्याय कैसे हो सकता है ये मेरा भाई है खसोट , इसने अपनी बकरी बेंच दी और अब मेरी बकरी को कह रहा  है की ये उसकी बकरी है  "
खसोट मल 
"नहीं महराज ये मेरी ही बकरी है देखिये न मुझे कितने प्यार से देख रही है "
मंत्री 
"तो तुम दोनों की बकरियां बिलकुल एक जैसी थी क्या "
खसोट 
"जी मंत्री जी दोनों जुड़वां थी "
मंत्री 
"कोई निसान जिस से तुम पहचानते थे की ये तुम्हारी वाली  है "
लूट 
"नहीं मंत्री जी कभी जरूरत ही नहीं पड़ी दोनों साथ में ही रहती थी और हम दोनों को अच्छे से खिलाते पिलाते थे "
महराज 
"लूट मल मैं कहता हूँ  ये बकरी खसोट  मल की है तुम कैसे साबित करोगे की ये तुम्हारी है "
लूट 
"महराज आप बड़े लोग हैं आप जो भी चाहे कह सकते हैं लेकिन बकरी तो मेरी ही है "
महराज 
"खसोट मल ! और तुम "
खसोट 
"महराज ! क्यूंकि ये बकरी लूट मल की नहीं है इस लिए ये मेरी ही हुई और तीसरा कोई है नहीं यहाँ पर मालिकाना हक जताने के लिए  , मामला पानी की तरह साफ़ है महाराज  "
राज वैद्य खड़े होते हैं 
"महाराज हमें  जड़ तक जाना होगा "
महराज 
"हाँ तो जड़ लेके आइये कौन सी जड़ी बूटी की  "
राज वैद्य 
"महराज छमा ! मैं कहना चाहता हूँ की हमें सबसे पहले इस बात का पता लगाना होगा  की इन दोनों को ये बकरियां मिली कहाँ से  "
मंत्री 
"कहाँ से मिली थी ये बकरी "
लूट 
"महराज हमारी माँ ने हमें ये बकरियां उपहार में दी थी "
दरबान तेजी से चिल्लाता है 
"लूट और खसोट मल की अम्मा हाजिर हों "
[एक काफी बुजुर्ग औरत डंडे से टेकते हुए आती है ]
मंत्री 
"माता जी ! आप हमें बताये की आपने कौन सी बकरी किसको दी थी और ये किसकी बकरी है "
[बूढी औरत बहुत धीमे से कुछ बोलती है किसी को कुछ भी  सुनाई नहीं देता है मंत्री जी उसके पास जाते हैं और वो उनके कान में कुछ कहती है ]
मंत्री 
"महराज हो गया दूध का दूध और पानी का पानी माता जी ने बताया की इन्होने चुनिया नाम की बकरी लूट मल  को दी थी और मुनिया नाम की बकरी खसोट को तो लूट मल  और खसोट मल  तुम्हे तो पता ही होगा की ये चुनिया है या मुनिया "
लूट मल 
"चुनिया "
खसोट मल 
"मुनिया "
[ पूरे दरबार में लोग शांत हो गए राज गुरु फिर से खड़े हुए ]
"महराज ये मामला धीरे धीरे गहराता ही जा रहा है "
स्वर्ण कार खड़े हुए 
"महा राज अगर आप की आज्ञा हो तो मैं कुछ सलाह दूं "
राज गुरु 
"हाँ जरूर "
[महराज ने भी हाँ में सर हिलाया ]
[ स्वर्ण कार ने बकरी को पकड़ा , लूट और खसोट दोनों को काफी दूर जाने के लिए कहा और दोनों के बीच में बकरी को छोड़ दिया  , बकरी तीसरी तरफ भाग गयी ]
स्वर्ण कार 
"महाराज ! मामला बहुत ही पेंचीदा है बकरी को भी नहीं पता की उसका मालिक कौन है "
सेनापति 
"अब हम नहीं हमारी तलवार फैसला करेगी की ये बकरी किसकी है "
[सेनापति ने म्यान से तलवार को खीचा और तेजी से तलवार को बकरी के गर्दन की बगल से लहरा दिया लूट खसोट पर कोई फर्क नहीं पड़ा महराज राज गद्दी से नीचे गिर गए और अपने सीने पर हाथ रख कर जोर जोर से सांस लेने लगे राज्य वैद्य महराज की तरफ दौड़े और उनकी नाडी पकड़ कर देखने लगे ]
राज वैद्य 
"महराज को दिल का दौरा  पड़ा है जल्दी से कोई पानी लेके आओ  "
[वैद्य ने अपनी जेब से पोटली निकाली और एक लेंडी निकाल कर महराज को खिला दी महराज अब भी वैसे ही तड़प रहे हैं ]
मंत्री 
"राज वैद्य आज आपकी दवा क्यूँ नहीं काम कर रही  "
राज वैद्य 
"विपदा बड़ी है "
[राज वैद्य ने पूरी थैली महराज के मुह पर उड़ेल दी महराज ने कुछ खायी और कुछ उगल दी और कुछ देर में ही उठ खड़े हुए , राज गद्दी पर वापस बैठ गए  ]
महराज 
"सेनापति ! तुम ऐसी ही हरकते करते रहे तो हम तुम्हे सेनापति पद से हटा देंगे "
सेनापति 
"महराज मैंने तो सोंचा था की अगर मैं बकरी पर वार करूँगा , जिसकी भी बकरी होगी वह जरूर कोई न कोई हरक़त करेगा और  हमें पता चल जाएगा की ये बकरी किसकी है लेकिन ये तो दोनों के दोनों जल्लाद निकले इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा  "
राज गुरु
"मैं तो कहता हूँ ये दोनों सजा के हक़दार हैं इन दोनों को सजा मिलनी चाहिए  "
लूट और खसोट
"महराज ! हमें बकरी नहीं चाहिए छमा करे हम चले जाते हैं यहाँ से आप इस बकरी को अपने पास ही रखिये "
सेनापति
"ऐसे कैसे चले जाते हैं सजा तो मिलेगी ! आखिर महराज का अपमान हुआ है "
लूट और खसोट 
"महराज का अपमान कैसा अपमान "
[मंत्री लूट और खसोट के पास जाकर दोनों को बताते हैं की उन दोनों के आने से पहले इस बकरी ने क्या किया लूट और खसोट दोनों अपने अपने घुटनों पर झुक जाते हैं ]
लूट
"महराज मुझे तो सुरु से ही संदेह था की ये बकरी मेरी नहीं हो सकती इतनी सैतान बकरी हो न हो ये इस खसोट की ही है "
खसोट
"नहीं महराज ! लूट सरासर झूठ बोल रहा है मेरी बकरी तो बिलकुल शांत स्वभाव की थी बिलकुल मेरी अम्मा की तरह , ये तो लूट की ही बकरी है जिसे हर काम बिगाड़ने की आदत है लूट की घरवाली की तरह "
[ लूट खसोट की अम्मा कुछ बोलती है धीमे से लेकिन कोई सुन नहीं पाता कोई ध्यान नहीं देता वो दोबारा कुछ बोलती हैं इस बार राज गुरु का ध्यान जाता है राज गुरु मंत्री को इशारा करते हैं मंत्री माता जी के पास आते हैं और सुनते हैं की माता जी क्या कह रही हैं ]
मंत्री
"महराज ! माता जी कह रहीं है की वो पता लगा सकती हैं है की कौन झूट बोल रहा है और उनको सक भी लूट मल  पर ही है क्यूंकि इसे बचपन से ही इधर का उधर करने की आदत है  "
महराज
"हाँ तो माता जी से कहो की जल्द इस गुत्थी को सुलझाए ताकि हम कूसूरवार को सजा सुना सकें  "
[माता जी मंत्री से कुछ कहती हैं ]
मंत्री
"माता जी कह रहीं है की इन दोनों की बीवियों का बुलाया जाए "
[दरबान चिल्लाता है लूट और खसोट की लुगाइयां हाजिर हों ,  दो देखने में ठीक ठाक  औरतें  सूती कपडे की साड़ियाँ पहने हुए  आती हैं ]
[माता जी फिर मंत्री जी के कान में कुछ कहती हैं ]
मंत्री दोनों औरतों की तरफ देखते हुए पूंछते हैं
"बताओ ये बकरी किसकी है "
लूट की लुगाई
" महराज ये बकरी हमारी है ये खसोट तो जन्म जात झूठा है "
[लूट अपनी लुगाई की तरफ देख कर न में सर हिलाता है ]
लूट की लुगाई 
"सर क्या हिलाते हैं जी जो सच है वो सच है "
[लूट अपना मुह दूसरी तरफ घुमा के छुपाने लगता है ]
राज गुरु
"हमें लूट और खसोट को बाहर  भेज देना चाहिए "
[लूट और खसोट बाहर चले जाते हैं ]
मंत्री खसोट की लुगाई से
"तुम बताओ ये बकरी तुम्हारी है "
खसोट की लुगाई
"जी सरकार ये बकरी हमारी है और इस बात में उतनी ही सच्चाई है जितनी की इस बात में है की हमारे महराज बहत ही कुसल , न्याय प्रिय और मर्यादित राजा हैं  "
[हर कोई महाराजा की तरफ देखने लगता है महाराज सीना तान कर बैठ जाते हैं  ]
मंत्री
"ये बकरी किसकी है अगर पता नहीं चला तो हम इस बकरी को जप्त कर लेंगे और तुम में से किसी एक का बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा "
लूट की लुगाई
"महराज ! इसका पति और ये दोनों बहुत बड़े झूठे हैं गाँव के लोगों की चीजे चुरा कर बेचना इनका धंधा है इसी से इनकी रोजी रोटी चलती है "
खसोट की लुगाई
"तो  तुम्हारा खसम कौन सो दूध का धुला है  आये दिन अंगूरी बाई के कोठे पर ही मिलता है "
लूट की लुगाई
"अरे तो तेरा खसम कौन सा हरिश्चंद है वही तुझे बताता हैं न अंगूरी की कहानियां वो वहां अंगूरी की आरती उतारने जाता है बड़े आये दूसरों पर उंगली उठाने वाले "
खसोट की लुगाई 
"मेरा मर्द मुझसे पूछ कर जाता है "
लूट की लुगाई
"हाँ तेरा मर्द दो क़त्ल भी करने जाएगा तो तुझसे पूछ कर जाएगा तू है ही इतनी अप्सरा "
खसोट की लुगाई 
"मेरा मर्द मेरे बस में है तभी जो भी करता है बता कर करता है मुझसे तेरे मर्द की तरह नहीं है की बिना बताये हफ्ते हफ्ते के लिए गायब हो जाए "
लूट की लुगाई
"हां बड़ा बस में है तभी तो तुझे बिना बताये तेरी मुनिया को बेच आया "
खसोट की लुगाई 
"बता के बेंचा है मुझे और  मेरी मुनिया को नहीं तेरी चुनिया को बेच कर आया है "
[इतना कहने के बाद दोनों बिलकुल शांत हो गयी खसोट की लुगाई सर पकड़ कर बैठ गयी माता जी ने मंत्री के कान में कुछ कहा  ]
मंत्री
"महराज आखिर पता चल गया की किसकी बकरी है माता जी कह रही हैं की ये दोनों कुछ भी बिना अपनी लुगाइयों से पूछे नहीं करते  "
महराजा
"हम्म ! खसोट और लूट को बुलाया जाए "

[दरबान चिल्लाता है  ]
" लूट और खसोट हाजिर हों "

[लूट और खसोट दोनों अन्दर आते हैं]

महराजा
"ये बकरी लूट मल को  दी जाती हैं और क्यूंकि खसोट मल ने  लूट मल  की बकरी बेंच दी और बकरी खसोट मल की है इस लिए सजा उसे ही मिलेगी खसोट मल अपनी ता उम्र बकरी नहीं पाल सकता और अगर इसने कभी भी बकरी पालने की कोशिश की तो वो बकरी जप्त कर ली जायेगी "
[सभी ताली बजाते हैं और एक साथ आवाज लगाते हैं ]
"महाराज की जय हो "
"महाराज की जय हो "
  



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