रास्ते पर खून ही खून ,गहरा लाल
बह रहा है !
मै एक कोने में खड़ा हूँ ,
और मैंने अपनी आँखे बंद कर लीं!
अपने आप को समझाया ,ये तुम्हारा नहीं है लोगो का है !
दुबारा आँखे खोलीं ,
लाशें ,मांस के लोथड़े ,हड्डियाँ सब बह रहें हैं ,
कुछ कुत्ते हैं जो बहे जा रहें हैं फिर भी हड्डियों के लिए लड़ रहें हैं !
मैंने दुबारा आँखे बंद कर लीं ,
और अपने आप को समझाया ये तुम नहीं हो ,
तुम तो अभी जिन्दा हो !
चीख़ने, चिल्लाने की आवाजें सुनाई दे रही हैं,
और तेज होती जा रही हैं ,मैंने आँखे बंद कर रखी हैं,
कुछ मेरी तरफ आ रहा है ,मैंने अब भी आँखे नहीं खोलीं ,
कुछ मुझे नोच रहा है ,मैंने आँखे नहीं खोलीं ,
शायद मेरा भी खून बह रहा है ,मैंने आँखे नहीं खोलीं ,
खून बह रहा है ,
पर आँखे बंद हैं ,
शायद हम जिन्दा हैं !
सच्चाई को वयां करती अच्छी रचना ,बधाई
ReplyDeletesatyapurn...maarmik our daarsanik chitran....bahut badhiya.....aap jinda hain.
ReplyDeleteaapne bahut achha likha hai
ReplyDeletey to sachaye hai
बहुत खूब, सुन्दर रचना..........
ReplyDeleteसच यही है की जब तक अपना खून नहीं बहता तब तक आँखें नहीं खुलती......और जब खुलती हैं तो बहुत देर हो जाती है....