जब भी मै बंद करता हूँ अपनी मन कि आँखे |
दूर बहुत दूर मुझे नज़र आता है कुछ ,
कुछ धुंधला सा, चमकदार,सुनहरा,
रोशनी से भरपूर ,उजाला और उजाला ,
फिर सब कुछ गायब हो जाता है ,
और मै उदास हो जाता हूँ |
भूत जो घसीटते घसीटते चला गया
पर छोड़ गया कुछ रेखाएं मेरे चेहरे पर |
वर्तमान जो हँसता है मुझे देख कर ,
कभी कभी मजाक भी उड़ाता है मेरा |
भविष्य जो दिखता है उजाले से भरपूर,
मुझे अपने पास बुलाता है ,
कहता है मुझे पकड़ लो
बैठ जाओ मेरे पास नहीं तो मै
भी हंसूंगा वर्तमान कि तरह
और भूत कि तरह कुछ रेखाएं
छोड़ के चला जाऊँगा
फिर दोबारा नहीं आऊंगा |
और फिर मै सोचता हूँ कि यही तो है
जीने कि वजह और लग जाता हूँ,
भविष्य को पकड़ने में ||
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