Friday, August 3, 2012

अन्ना आन्दोलन : क्या खोया क्या पाया


अन्ना जी ने पहला आन्दोलन किया , पहली बार का जोश था  | भारत की जनता को लगा की हाँ ,अब हमें कोई सही नेता मिला है जिसके पीछे अगर हम चलेंगे तो हमें कुछ हासिल होगा ,
मैं  तो जब से जान ने लायक हुआ , तभी से गाँधी जी के विचारो से असहमत था , न ही मेरा कभी ये मान ना था की हमें जो आजादी मिली वो गांधी जी ने  दिलायी , कितने ही हमारे क्रांतिकारियों ने जान दी , सुभाष चन्द्र बोश , भगत सिंह , आजाद और इन में से किसी को अपनी जान की परवाह नहीं थी अगर सायद इन्हें अपनी जान की परवाह होती तो आज हमें ये आजादी ना मिली होती लेकिन हमें गीत सुनाया गया " दे दी  हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल " अगर इन पंक्तियों को हम समझे तो ये यही कह रही हैं की गाँधी जी ने हमें आजादी दिलाई , जिसका मतलब हुआ की अगर भगत सिंह ने अपनी जवानी में असेम्बली में बम फोड़ा , और खुद को गिरफ्तार कराया वो आजादी पाने में सहायक नहीं हुआ , सुभाष चन्द्र बोश जी ने आजाद हिंद फ़ौज बनायीं और देश को खुद के दम पर आजाद कराने  का बीड़ा उठाया उसका आजादी में कोई सहयोग नहीं है |  ये तो हो गयी आजादी की बात जिस पर चर्चा करना बहुत ही दीर्घ विषय है और मैं अपना कद बहुत छोटा समझता हूँ लेकिन मेरे विचार यहीं हैं और हमेशा रहेंगे की आजादी गर किसी की वजह से मिली हैं तो वह हैं  सर्व प्रथम नाम सुभाष चन्द्र बोश , भगत सिंह , आजाद , राम प्रसाद बिस्मिल , और ना जाने कितने हमारे वीर क्रांतिकारी | 

अगर बात किसी को ऐसे नहीं समझ आई तो मैं एक और छोटा और सीधा सा उदा हरंड देता हूँ मान लीजिये एक माँ के दो बेटे हैं ,  माँ के घर पर बाहर से कुछ लोग आये और उन्होंने कब्ज़ा कर लिया एक बेटा है जो दिन रात घर पर बम फेंक रहा है उनको घर से निकलने नहीं दे रहा उनकी नाक में दम कर रखा है और दूसरा भाई है जो की उनसे जाता है रोज बात करता की आप लोग हमारा घर छोड़ के चले जाओ ...
अब कब्ज़ा करने वाले लोग क्या करें उनका जीना दूभर हो चूका है उन्होंने जाने का फैसला कर लिया . आगे मुझे कुछ  समझाने की जरूरत नहीं है 

हमारी संस्कृति भी ऐसी ही है जब जब असुरो का पाप बढ़ा भगवान् ने अस्त्र उठाया , हमारा यह मानना रहा है की अत्याचार करने वाला जितना दोषी है उतना ही दोषी अत्याचार सहने वाला भी है 
क्या  राम , परसुराम और शिव  जी ने हमें जो रास्ता दिखाया वो गलत है अगर वो गलत है तभी ये रास्ता सही हो सकता है , अन्यथा नहीं ..
बात फिर आन्दोलन पर आती है पहले आन्दोलन में अन्ना जी  की टीम ने क्या हासिल किया , लोग कहते हैं की कुछ हासिल किया या नहीं किया उन्होंने हिम्मत तो दिखाई मैं  कहता हूँ जरूर मैं आपकी बात से पूरी तरीके से सहमत हूँ , पहले आन्दोलन में मै भी गया मैंने भी नारे लगाये मेरे अन्दर भी उत्साह था की लगता है अब कुछ होगा परन्तु , राजनीतिज्ञों के वादे , कूटनीति जिनसे आप , हम हर कोई भली भांति परिचित हैं उन्ही में फंस कर अन्ना जी का पहला आन्दोलन ख़त्म हो गया , हमने भी संसद में बिल के पीछे खूब तमाशा देखा , आप लोगों ने भी देखा होगा ..आखिर पहले आन्दोलन से हासिल क्या हुआ पहले आन्दोलन की कवरेज मीडिया ने भी खूब जोर शोर  से की , जिस समय मान नीया सोनिया गाँधी विदेश कुछ ऑपरेशन करने गयी थी , कुछ लोगों का मानना था की वहां कुछ बड़ा ही पक रहा है जिसकी वजह से मीडिया पूरा कवरेज इधर ही दे रही है ..मीडिया कोई आज नहीं बिकी है मीडिया तो हमेशा से बिकी हुई है , हाँ तो बात हो रही थी की कुछ नहीं हासिल हुआ तो क्या हम साथ में खड़े तो हुए,  दिखा तो भारत वासी भी एक जुट हो सकते हैं बात तो सही है , एकता में ही शक्ति है लेकिन आप इस पहलु पर भी ध्यान ने की हम भारत वासी इकट्ठे हुए , हमने खूब कोसिस की लेकिन फिर भी हम वो नहीं पा सके जो हम चाहते थे इसका एक सन्देश ये भी जा सकता है की इतने लोग इकट्ठे होकर भी एक बिल नहीं पास करा पाए जो हम करना चाहते थे हम नहीं करा पाए हम सरकार के आगे झुक गए हम सोनिया गाँधी के आगे झुक गए ..

जिस से उच्च स्थानों पर बैठे लोगों को ये संदेश गया की ये भारत वासी इकट्ठे होकर भी एक बिल नहीं पास करा सकते अगर कल को इन पर कोई बड़ा कदम उठाया जाय तो क्या उसके खिलाफ कुछ कर पायेंगे ...
पहला आन्दोलन गया और अगर खरे खरे सब्दों में कहे तो हमें कुछ भी हासिल नहीं हुआ हमने खुद को एक्सपोज किया की हम बस इतना ही कर सकते हैं बस इतनी ही है हमारी हिम्मत हमारी औकात 
उसके बाद भी छुट पुट आन्दोलन होते रहे कभी एक दिन कभी दो दिन 
फिर हुआ ये अंतिम आन्दोलन जिसमे अन्ना जी और उनकी टीम खुद बैठी और खुद ही ये भी फैसला कर लिया की बस अब हम आन्दोलन से कुछ नहीं कर पायेंगे हमें राजनीति में जाना होगा 
वैसे भी सारे फैसले अन्ना जी और उनकी टीम ही करती आ रही है कब बैठना है हमें जो चाहिए वो मिले या ना मिले अनसन कब तोड़ना है सो अब अनसन भी ख़त्म हुआ और सीधे कहें तो इस बार कांग्रेस ने अन्ना जी को और हमको हमारी औकात दिखा दी की देख लो हमें जो करना है हम वही करेंगे ...

अब अन्ना जी और उनके टीम के लोग राजनीति में जायेंगे अब सवाल ये है तो लोकपाल का क्या होगा आएगा लोकपाल , लोकपाल कब आएगा जब अन्ना जी और उनकी सरकार बनेगी कब बनेगी सरकार अब टाइम लगेगा अभी सिर्फ दो  पार्टिया हैं जो केंद्र में जा सकती हैं एक है भाजपा और एक है कांग्रेस , भाजपा और कांग्रेस तक के  लेवल की पार्टी बनाने में २० से २५ साल तो लग ही जायंगे तब तक , अन्ना जी और उनकी टीम ने मोदी जी को  पहले  ही  कई विभूतियों से नवाज दिया  है जिसका  मतलब है की ये मोदी जी को तो कदापि समर्थन नहीं करेंगे , अब बचा कौन कांग्रेस आगे आप लोग खुद ही समझदार हैं 
तो जो भारत के ५० से ६० % की उम्मीद थी की हो सकता है २०१४ में मोदी जी केंद्र में आयें और गुजरात की तरह पूरे देश में २४ घंटे लाइट रहे , पानी की समस्या ना हो  और भी बहुत कुछ ...... ये उसको भी डुबो देंगे , और उसी कांग्रेस का समर्थन करेंगे जिसने इनके साथ क्या क्या नहीं किया  या तो राजनीति में २० से २५ साल तक अलग रहेंगे ...

अब कुछ लोग अगर मुझे गालियाँ देना चाहते हो तो दे जो मेरे खुद के विचार हैं मैंने वही लिखे हैं और मैं अपने विचारो से सत प्रतिसत सहमत हूँ और सदैव रहूँगा 
अगर आप का रास्ता सही नहीं  है आप परिस्थतियों के अनुसार जवाब नहीं देते हैं सवाल  कुछ दूसरा है आप का जवाब दूसरा है  तो ऐसे ही कुछ भी हासिल  नहीं होने वाला 
अगर जब से आन्दोलन सुरु हुआ और आज जब की हमें पता चल गया की अब आन्दोलन पूरी  तरीके से बुझने  वाला है अगर आम जनता को हमारी भारत माता को कुछ भी हासिल हुआ हो तो मुझे भी बताये 

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

क्या कुछ बदला इस सब से हम सब लोग वाकिफ हैं  रही बात राजनीति की तो राजनीति ने तो अच्छे अच्छों को नहीं बक्शा है 
जो ऊँचा सुनते हैं उन्हें धमाकों की जरूरत होती है माननीय भगत सिंह जी की बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है ! 
कायरता से न कोई क्रांति कभी हुई है न कभी होगी मेरा यही मानना है और सदैव रहेगा !
भारत न तब महत्मा गाँधी के अनसन से  आजाद हुआ था और न आज अनसन से आजाद होगा , हमें भगत सिंह , नेता जी और आजाद चाहिए जिनसे डरकर भले ही यह जन लोकपाल अन्ना की झोली मैं आ गिरता  !

विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत , बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीती !!
इसे याद रखो विनय के लिए ३ दिन ही काफी हैं और नहीं !

Wednesday, May 23, 2012

जनता , कांग्रेस और भाजपा


जनता 
"लोकपाल लाओ लोकपाल लाओ" 
कांग्रेस 
"भाजपा सहमत नहीं है" 
जनता भाजपा से 
"लोकपाल लाओ "
भाजपा 
"हमारी सरकार बनवाओ" 
जनता 
"मंहगाई इतनी अधिक क्यूँ हैं  "
कांग्रेस 
"तेल की कीमते बढ़ रही हैं अंतर रास्ट्रीय बाजार में" 
जनता 
"रुपये की कीमत क्यूँ घट रही है" 
कांग्रेस 
आ कक ल नं नाम जक बन जज क्सक्सक्स ल उद 
जनता को कुछ भी समझ नहीं आया 
भाजपा चुप है 
जनता 
"पेट्रोल की कीमत फिर से क्यूँ बढाई" 
कांग्रेस 
"सरकार चलाना इतना आसान  नहीं है सब कुछ देख कर चलना पड़ता है "
जनता 
"फिर सरकार क्यूँ बनाई  अगर चला नहीं सकते "
भाजपा चुप है उसे लग रहा है की इन दोनों के झगड़े में मेरी बन जायेगी 
कांग्रेस 
"कोई जरूरी नहीं की हम हर बात का जवाब दे 
और सरकार हमने  बनाई जब तुमने बनवाई "
जनता खीझ  कर रह गयी 
भाजपा और खुश अबकी तो लग रहा है बन ही जायेगी 
जनता 
"तुम लाख लाख करोड़ के घोटाले करते हो अगर हिसाब नहीं रख सकते तो इतना क्यूँ देते हो लोगों को "
कांग्रेस 
वी  बीलिव इन बींग पोसिटिव 
जनता 
"घोटालों की जांच कराते हो जब रिपोर्ट आती है  तो स्थगित कैसे कर देते हो "
कांग्रेस 
"पैसे किसने दिए "
जनता 
"तुम ने "
कांग्रेस 
"जांच किस ने करायी "
जनता 
"तुम ने "
कांग्रेस 
"तो हमने स्थगित भी कर दिया "
जनता 
लेकिन पैसा तो मेरा था 
कांग्रेस 
"तो तुम्हारे लिए ही तो हजार हजार करोड़ की स्कीम बनाते हैं "
जनता 
"लेकिन हम तक तो कुछ पहुंचता नहीं "
भाजपा काफी देर बाद जैसे नींद से जागी है 
"कांग्रेस  चोर है "
जनता 
"अब कांग्रेस  को नहीं जिताना है "
भाजपा खुश 
जनता भाजपा से 
"हम तुम्हे जिताएंगे प्रधान मंत्री कौन बनेगा "
भाजपा 
"कोई भी बने हमें बनाना है 
तुम से क्या "
जनता 
हम तुम्हे  नहीं जिताएंगे 
भाजपा 
"जाओ फिर कांग्रेस  के पास 
भीगा भीगा कर मारेगी "
जनता मुह झुकाए खड़ी है 
जनता 
" आई पी एल  सुरु हो गया भागो जल्दी चलो जल्दी चलो  "


Thursday, May 17, 2012

"बकरी किसकी" नाटक


[ दरबार सजा है मंत्री , सेनापति , राज वैद्य , और भी कई लोग  राजा  के दरबार में अपनी अपनी गद्दियों पर बैठे हैं दरबान चिल्लाता है ]
"महाराजाओं के महराजा ,दीन  दुखियों के सेवक ,सबके कल्याणकरता महा विनाशक  , सूर वीर महा वीर "
[महाराजा आकर दरवाज़े के पास खड़े हो गए और दरबान को देख रहे हैं की इसका कथन ख़त्म हो तो मैं आगे जाऊं ]
"कभी एक तीर कभी दो तीर कभी तीर ही तीर मिटा देते हैं सबकी पीर ,अपराजेय  अबला  "
[अबला कहने पर महाराज दरबान को देखने लगते हैं ]
"अबलाओं को बना दे सबला "
[महाराज धीरे से ]
"आपकी आज्ञान हो तो हम अन्दर जाएँ "
[दरबान धीरे से ]
"हाँ महराज बस हो गया"
" गिद्ध पुर के राजा श्री मान श्री श्री  "
[महाराजा दरबान को फिर से घूरते हैं ]
"श्री चटुक चम्प चौकान्ना सिंह पधार रहे हैं "
[महराजा पहला कदम बढ़ाते हैं सारे लोग खड़े हो जाते हैं अपनी अपनी जगह पर और अपना अपना सर झुका लेते हैं इतने में ही एक बकरी दौड़ती हुई आती है और महाराज के रास्ते भर में फूलों की तरह लेंडी बिखेरती हुई महराज के राज सिंघासन के बगल में जाकर खड़ी हो जाती है पूरा रास्ता लेडियों से भर जाता है दरबार में हर किसी ने सर झुका रखा है और उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है महराज अपना गला साफ़ करने लगते हैं  ]
"ह्म्हम्हम्ह्म "
[हर कोई सर ऊपर उठाता है, सेनापति , मंत्री सभी दौड़ कर महराज के रास्ते से बकरी की लेंडी साफ़ करने लगते हैं राज्य वैद्य भी साफ़ करने के लिए झुकते हैं इतने में उनके  कुरते के जेब से एक थैली दवाई की गिरती है जो की खुली हुई है दवाई भी काले रंग की ही है और लेंडी भी , राज्य वैद्य की उम्र की काफी हो गयी है और उनकी आँखें भी कमजोर हो गयी हैं वैद्य जी जमीन पर हाथ फेरते हैं और जो कुछ भी उनकी मुट्ठी में आता है सारा कुछ अपनी थैली में भर कर वापस जेब में डाल लेते हैं रास्ता भी साफ़ हो जाता है महराज जाकर अपनी राज गद्दी पर बैठते हैं और मंत्री बकरी को पकड़ कर नीचे सबके बीच में खड़े हो जाते हैं  ]
सेनापति खड़े होते हैं 
"महाराज की जय हो इस बकरी ने जो कुछ किया इसके लिए इसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए "
राज गुरु खड़े होते हैं 
"सेनापति नादानों  जैसी बाते क्यूँ करते हो ये जानवर तो बेजुबान और बिना अक्ल का है लेकिन जो ऊपर वाले ने तुमको अक्ल दी है उसका तो सदुपयोग करो "
[सभी लोग हंस पड़ते हैं ]
राज गुरु 
"महराज हमें बकरी को नहीं इस बकरी के मालिक को सजा देनी चाहिए "
मंत्री 
"राज गुरु ! छमा करे लेकिन ये नहीं हो सकता "
राज गुरु 
"क्यूँ नहीं हो सकता ये बकरी चाहे आपकी ही हो सजा तो मिलेगी ही महराज का इतना घोर अपमान "
मंत्री 
"महराज ! आज हम इस राज दरबार यही पता लगाने के लिए एकत्रित हुए हैं की ये बकरी किसकी है दो भाई हैं लूट मल और खसोट मल उन दोनों का कहना है की ये बकरी उनकी है और हमें फैसला करना है की इस बकरी का वाजिब मालिक कौन है   "
राज गुरु 
"तो दोनों को आधी आधी सजा मिलेगी "
महराज 
"हमारे रहते हुए ऐसा अन्याय नहीं होगा हम पता लगायेंगे की बकरी किसकी है और उसी को पूरी की पूरी सजा दी जायेगी "
दरबान चिल्लाता है 
"लूट और खसोट मल हाजिर हो "
[दोनों धोती और गन्दी बनियान पहने हुए आते हैं ]
लूट मल 
"महराज आप के राज्य में ऐसा अन्याय कैसे हो सकता है ये मेरा भाई है खसोट , इसने अपनी बकरी बेंच दी और अब मेरी बकरी को कह रहा  है की ये उसकी बकरी है  "
खसोट मल 
"नहीं महराज ये मेरी ही बकरी है देखिये न मुझे कितने प्यार से देख रही है "
मंत्री 
"तो तुम दोनों की बकरियां बिलकुल एक जैसी थी क्या "
खसोट 
"जी मंत्री जी दोनों जुड़वां थी "
मंत्री 
"कोई निसान जिस से तुम पहचानते थे की ये तुम्हारी वाली  है "
लूट 
"नहीं मंत्री जी कभी जरूरत ही नहीं पड़ी दोनों साथ में ही रहती थी और हम दोनों को अच्छे से खिलाते पिलाते थे "
महराज 
"लूट मल मैं कहता हूँ  ये बकरी खसोट  मल की है तुम कैसे साबित करोगे की ये तुम्हारी है "
लूट 
"महराज आप बड़े लोग हैं आप जो भी चाहे कह सकते हैं लेकिन बकरी तो मेरी ही है "
महराज 
"खसोट मल ! और तुम "
खसोट 
"महराज ! क्यूंकि ये बकरी लूट मल की नहीं है इस लिए ये मेरी ही हुई और तीसरा कोई है नहीं यहाँ पर मालिकाना हक जताने के लिए  , मामला पानी की तरह साफ़ है महाराज  "
राज वैद्य खड़े होते हैं 
"महाराज हमें  जड़ तक जाना होगा "
महराज 
"हाँ तो जड़ लेके आइये कौन सी जड़ी बूटी की  "
राज वैद्य 
"महराज छमा ! मैं कहना चाहता हूँ की हमें सबसे पहले इस बात का पता लगाना होगा  की इन दोनों को ये बकरियां मिली कहाँ से  "
मंत्री 
"कहाँ से मिली थी ये बकरी "
लूट 
"महराज हमारी माँ ने हमें ये बकरियां उपहार में दी थी "
दरबान तेजी से चिल्लाता है 
"लूट और खसोट मल की अम्मा हाजिर हों "
[एक काफी बुजुर्ग औरत डंडे से टेकते हुए आती है ]
मंत्री 
"माता जी ! आप हमें बताये की आपने कौन सी बकरी किसको दी थी और ये किसकी बकरी है "
[बूढी औरत बहुत धीमे से कुछ बोलती है किसी को कुछ भी  सुनाई नहीं देता है मंत्री जी उसके पास जाते हैं और वो उनके कान में कुछ कहती है ]
मंत्री 
"महराज हो गया दूध का दूध और पानी का पानी माता जी ने बताया की इन्होने चुनिया नाम की बकरी लूट मल  को दी थी और मुनिया नाम की बकरी खसोट को तो लूट मल  और खसोट मल  तुम्हे तो पता ही होगा की ये चुनिया है या मुनिया "
लूट मल 
"चुनिया "
खसोट मल 
"मुनिया "
[ पूरे दरबार में लोग शांत हो गए राज गुरु फिर से खड़े हुए ]
"महराज ये मामला धीरे धीरे गहराता ही जा रहा है "
स्वर्ण कार खड़े हुए 
"महा राज अगर आप की आज्ञा हो तो मैं कुछ सलाह दूं "
राज गुरु 
"हाँ जरूर "
[महराज ने भी हाँ में सर हिलाया ]
[ स्वर्ण कार ने बकरी को पकड़ा , लूट और खसोट दोनों को काफी दूर जाने के लिए कहा और दोनों के बीच में बकरी को छोड़ दिया  , बकरी तीसरी तरफ भाग गयी ]
स्वर्ण कार 
"महाराज ! मामला बहुत ही पेंचीदा है बकरी को भी नहीं पता की उसका मालिक कौन है "
सेनापति 
"अब हम नहीं हमारी तलवार फैसला करेगी की ये बकरी किसकी है "
[सेनापति ने म्यान से तलवार को खीचा और तेजी से तलवार को बकरी के गर्दन की बगल से लहरा दिया लूट खसोट पर कोई फर्क नहीं पड़ा महराज राज गद्दी से नीचे गिर गए और अपने सीने पर हाथ रख कर जोर जोर से सांस लेने लगे राज्य वैद्य महराज की तरफ दौड़े और उनकी नाडी पकड़ कर देखने लगे ]
राज वैद्य 
"महराज को दिल का दौरा  पड़ा है जल्दी से कोई पानी लेके आओ  "
[वैद्य ने अपनी जेब से पोटली निकाली और एक लेंडी निकाल कर महराज को खिला दी महराज अब भी वैसे ही तड़प रहे हैं ]
मंत्री 
"राज वैद्य आज आपकी दवा क्यूँ नहीं काम कर रही  "
राज वैद्य 
"विपदा बड़ी है "
[राज वैद्य ने पूरी थैली महराज के मुह पर उड़ेल दी महराज ने कुछ खायी और कुछ उगल दी और कुछ देर में ही उठ खड़े हुए , राज गद्दी पर वापस बैठ गए  ]
महराज 
"सेनापति ! तुम ऐसी ही हरकते करते रहे तो हम तुम्हे सेनापति पद से हटा देंगे "
सेनापति 
"महराज मैंने तो सोंचा था की अगर मैं बकरी पर वार करूँगा , जिसकी भी बकरी होगी वह जरूर कोई न कोई हरक़त करेगा और  हमें पता चल जाएगा की ये बकरी किसकी है लेकिन ये तो दोनों के दोनों जल्लाद निकले इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा  "
राज गुरु
"मैं तो कहता हूँ ये दोनों सजा के हक़दार हैं इन दोनों को सजा मिलनी चाहिए  "
लूट और खसोट
"महराज ! हमें बकरी नहीं चाहिए छमा करे हम चले जाते हैं यहाँ से आप इस बकरी को अपने पास ही रखिये "
सेनापति
"ऐसे कैसे चले जाते हैं सजा तो मिलेगी ! आखिर महराज का अपमान हुआ है "
लूट और खसोट 
"महराज का अपमान कैसा अपमान "
[मंत्री लूट और खसोट के पास जाकर दोनों को बताते हैं की उन दोनों के आने से पहले इस बकरी ने क्या किया लूट और खसोट दोनों अपने अपने घुटनों पर झुक जाते हैं ]
लूट
"महराज मुझे तो सुरु से ही संदेह था की ये बकरी मेरी नहीं हो सकती इतनी सैतान बकरी हो न हो ये इस खसोट की ही है "
खसोट
"नहीं महराज ! लूट सरासर झूठ बोल रहा है मेरी बकरी तो बिलकुल शांत स्वभाव की थी बिलकुल मेरी अम्मा की तरह , ये तो लूट की ही बकरी है जिसे हर काम बिगाड़ने की आदत है लूट की घरवाली की तरह "
[ लूट खसोट की अम्मा कुछ बोलती है धीमे से लेकिन कोई सुन नहीं पाता कोई ध्यान नहीं देता वो दोबारा कुछ बोलती हैं इस बार राज गुरु का ध्यान जाता है राज गुरु मंत्री को इशारा करते हैं मंत्री माता जी के पास आते हैं और सुनते हैं की माता जी क्या कह रही हैं ]
मंत्री
"महराज ! माता जी कह रहीं है की वो पता लगा सकती हैं है की कौन झूट बोल रहा है और उनको सक भी लूट मल  पर ही है क्यूंकि इसे बचपन से ही इधर का उधर करने की आदत है  "
महराज
"हाँ तो माता जी से कहो की जल्द इस गुत्थी को सुलझाए ताकि हम कूसूरवार को सजा सुना सकें  "
[माता जी मंत्री से कुछ कहती हैं ]
मंत्री
"माता जी कह रहीं है की इन दोनों की बीवियों का बुलाया जाए "
[दरबान चिल्लाता है लूट और खसोट की लुगाइयां हाजिर हों ,  दो देखने में ठीक ठाक  औरतें  सूती कपडे की साड़ियाँ पहने हुए  आती हैं ]
[माता जी फिर मंत्री जी के कान में कुछ कहती हैं ]
मंत्री दोनों औरतों की तरफ देखते हुए पूंछते हैं
"बताओ ये बकरी किसकी है "
लूट की लुगाई
" महराज ये बकरी हमारी है ये खसोट तो जन्म जात झूठा है "
[लूट अपनी लुगाई की तरफ देख कर न में सर हिलाता है ]
लूट की लुगाई 
"सर क्या हिलाते हैं जी जो सच है वो सच है "
[लूट अपना मुह दूसरी तरफ घुमा के छुपाने लगता है ]
राज गुरु
"हमें लूट और खसोट को बाहर  भेज देना चाहिए "
[लूट और खसोट बाहर चले जाते हैं ]
मंत्री खसोट की लुगाई से
"तुम बताओ ये बकरी तुम्हारी है "
खसोट की लुगाई
"जी सरकार ये बकरी हमारी है और इस बात में उतनी ही सच्चाई है जितनी की इस बात में है की हमारे महराज बहत ही कुसल , न्याय प्रिय और मर्यादित राजा हैं  "
[हर कोई महाराजा की तरफ देखने लगता है महाराज सीना तान कर बैठ जाते हैं  ]
मंत्री
"ये बकरी किसकी है अगर पता नहीं चला तो हम इस बकरी को जप्त कर लेंगे और तुम में से किसी एक का बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा "
लूट की लुगाई
"महराज ! इसका पति और ये दोनों बहुत बड़े झूठे हैं गाँव के लोगों की चीजे चुरा कर बेचना इनका धंधा है इसी से इनकी रोजी रोटी चलती है "
खसोट की लुगाई
"तो  तुम्हारा खसम कौन सो दूध का धुला है  आये दिन अंगूरी बाई के कोठे पर ही मिलता है "
लूट की लुगाई
"अरे तो तेरा खसम कौन सा हरिश्चंद है वही तुझे बताता हैं न अंगूरी की कहानियां वो वहां अंगूरी की आरती उतारने जाता है बड़े आये दूसरों पर उंगली उठाने वाले "
खसोट की लुगाई 
"मेरा मर्द मुझसे पूछ कर जाता है "
लूट की लुगाई
"हाँ तेरा मर्द दो क़त्ल भी करने जाएगा तो तुझसे पूछ कर जाएगा तू है ही इतनी अप्सरा "
खसोट की लुगाई 
"मेरा मर्द मेरे बस में है तभी जो भी करता है बता कर करता है मुझसे तेरे मर्द की तरह नहीं है की बिना बताये हफ्ते हफ्ते के लिए गायब हो जाए "
लूट की लुगाई
"हां बड़ा बस में है तभी तो तुझे बिना बताये तेरी मुनिया को बेच आया "
खसोट की लुगाई 
"बता के बेंचा है मुझे और  मेरी मुनिया को नहीं तेरी चुनिया को बेच कर आया है "
[इतना कहने के बाद दोनों बिलकुल शांत हो गयी खसोट की लुगाई सर पकड़ कर बैठ गयी माता जी ने मंत्री के कान में कुछ कहा  ]
मंत्री
"महराज आखिर पता चल गया की किसकी बकरी है माता जी कह रही हैं की ये दोनों कुछ भी बिना अपनी लुगाइयों से पूछे नहीं करते  "
महराजा
"हम्म ! खसोट और लूट को बुलाया जाए "

[दरबान चिल्लाता है  ]
" लूट और खसोट हाजिर हों "

[लूट और खसोट दोनों अन्दर आते हैं]

महराजा
"ये बकरी लूट मल को  दी जाती हैं और क्यूंकि खसोट मल ने  लूट मल  की बकरी बेंच दी और बकरी खसोट मल की है इस लिए सजा उसे ही मिलेगी खसोट मल अपनी ता उम्र बकरी नहीं पाल सकता और अगर इसने कभी भी बकरी पालने की कोशिश की तो वो बकरी जप्त कर ली जायेगी "
[सभी ताली बजाते हैं और एक साथ आवाज लगाते हैं ]
"महाराज की जय हो "
"महाराज की जय हो "
  



Sunday, May 6, 2012

uninvited 2 show


ये एक ऐसा शो है जिसमे कोई भी आ जाता है बिना बुलाये [ दूसरा शो ]
गेस्ट=>बहुत याद आ रही है अपनी मुनिया की हमै
होस्ट=>मुनिया कौन
गेस्ट=>अरे हमारी बकरी जब भी हमे देखती ऐसे प्यार से मे मे करके बुलाती थी , हम तो समझ गये थे की कितना प्यार करती है हमसे हमारी मुनिया अब तो मे मे सुनने को हम तरस गये
होस्ट=>आप की बकरी ने बोलना बंद कर दिया
गेस्ट=>हाँ भाई
होस्ट=>मतलब ऐसे कैसे बोलना बंद कर दिया हुआ क्या
गेस्ट=>अरे मर गयी हमारी मुनिया अब जब मर गयी तो कैसे बोलेगी आप बोलेंगे मरने के बाद
होस्ट=>अरे तो मैं तो अभी जिंदा हूँ
गेस्ट=>तो मर के बोल के दिखाइए बात करते हैं अरे जब आप मरके नहीं बोल पाएँगे तो उ तो बेचारी छोटी सी जान बकरी ही थी कहाँ बोलेगी मरने के बाद
होस्ट=>अच्छा तो क्या हुआ क्या था आप की मुनिया को
गेस्ट=>क्या होगा अच्छी ख़ासी मुस्टंदी थी इतना ख़याल रखते थे हम उसका खुद खाए चाहे ना खाए उसको कभी भूंका नहीं रहने देते थे
होस्ट=> अरे तो कैसे मर गयी फिर
गेस्ट=> अरे उमर हो गयी थी अच्छा दाम मिला बेच दिए
होस्ट=> तो रो क्यूँ रहे हो
गेस्ट=> बहुत याद आती है मुनिया की
होस्ट=> तो बेचा क्यूँ
गेस्ट=> बकरी पाला क्यूँ था बेचने के लिए ना
होस्ट => तो फिर प्यार क्यूँ कर लिया उस से
गेस्ट=> गाना गुनगुनाते हुए ( प्यार किया नहीं जाता हो जाता है )
होस्ट=> क्या बात है ! जिस से प्यार किया उसी को बेच दिया ये कैसा प्यार है
गेस्ट=> प्यार अँधा होता है ना
होस्ट=> तो
गेस्ट=> अब बकरी से प्यार होगा तो बकरी को तो कटना ही है बकरी का आशिक़ कब तक खैर मनाएगा
होस्ट=> झुझलाते हुए , हो गया तुम्हारा तो अब जाओ
गेस्ट=> अब तो हम कंगाल हो गये कहाँ जाएँगे आप ही कोई इंतज़ाम करवा दो
होस्ट=> क्यूँ जो बकरी बेंच के पैसा मिला उसका क्या किया?
गेस्ट=>मुनिया के गम मे हम पीने लग गये , रोज रोज ठेके पर जाने लगे
होस्ट=>अच्छा
गेस्ट=>अब जब हम ठेके पर जाते तो हमारे पड़ोसी भी मिल जाते वहीं पर और वो भी कहने लगते हमें भी मुनिया की बड़ी याद आ रही है तो हम कहते तुम भी पियो धीरे धीरे पूरे गांव के लोग आने लगे हमारा दुख बाटने बस दुख बाँटते बाँटते हमारी मुनिया की आख़िरी निसानी भी चली गयी
होस्ट=> आख़िरी निसानी
गेस्ट=> हाँ! अरे पैसा जो हमको मिला था बेच के मुनिया को
होस्ट=> तो अब आप दूसरी बकरी खरीद लो ना
गेस्ट=> हाँतो खरीद दो ना
होस्ट=> मैं क्यूँ खरीदने लगा बकरी
गेस्ट=> अब आप के पास आए है हमने सुना है आप बहुत दयालु है , दया की मूर्ति हैं आप से किसी का दुख देखा नहीं जाता (रोते हुए) आप करो ना हमारी मदद
होस्ट=> ये लो 100 रुपये 
गेस्ट=> 100 र्स मे बकरी मिलेगी
होस्ट=> नहीं दारू मिलेगी
गेस्ट=> वाह साहब क्या तरक़ीब निकाली है आपने
अच्छा तो मैं चलता हूँ {और चला गया} {कुछ देर बात एक औरत आई }
लेडी=> हमारे वो आए थे क्या यहाँ
गेस्ट=> अपपके वो को मैं कैसे पहचनुगा
लेडी=> मुनिया की कहानी तो नहीं सुना रहे थे वो
गेस्ट=> अच्छा तो वो थे आपके वो 
लेडी=> वही तो पूछा ना मैने हमारे वो आए थे , आप ने कुछ दिया तो नहीं
गेस्ट=> मुनिया के बारे मे  सुन के बड़ा दुख हुआ हमें
लेडी=> मुनिया हमारा नाम है , और कोई बकरी बकरा नहीं पाला हमने वो तो उनका रोज का काम है साम की दारू का इन्तेzआम करने के लिए, आप ने कुछ दिया तो नहीं
होस्ट=> धीमे से साला बकरी बकरी कर के मुझे बकरा बना गया( ) नहीं नहीं कुछ नहीं दिया , होस्ट ने मूह लटका लिया
लेडी=> फिर ये बच्चू की तरह मूह क्यूँ लटका लिया
होस्ट=> बच्चू  कौन
लेडी=> हमारा कुत्ता

Saturday, May 5, 2012

ununvited first show

tkt underwear


ये एक ऐसा शो है जिसमे कोई भी आ जाता है बिना बुलाये 


[होस्ट कुर्सी पर बैठा है. म्यूज़िक बजती है, दरवाज़े की तरफ़ से एक आदमी है बिल्कुल नया पटरदार कच्छा  और नयी बनियान और गले मे नया अंगौच्छा पहेन कर.]
[आते ही कहता है होस्ट से]
गेस्ट=> लो आप ने याद किया हम आ गये.
होस्ट => कहा से आ रहे हैं आप
गेस्ट=> सीधे दुबई से आ रहे हैं पहली बस पकड़ के अब जो भी पूछना है जल्दी पूछ लीजिए , हमे शामकी बस से वापस जाना है
होस्ट => अरे इतनीजल्दी मे क्यूँ हो
गेस्ट=>जल्दी मे क्यूँ हैं अब आप को क्या पता , दिल पर पत्थर रख कर आए हैं नयी नयी शादी हुई है हमारी, बीवी हमारी आने नहीं दे रही थी, कह रही थी आप चले जायंगे तो कैसे जीएँगे आप के बिना लेकिन हमने कैसे भी समझाया की परेसां मत हो,  बस हम यूँ गये और यूँ आए .
होस्ट => हमने तो आप को बुलाया ही नहीं आप क्यूँ आए
 गेस्ट=> अरे तो हम पागल हैं का आपै हमेशा शो मे मिमियाते रहते हैं कोई ढंग का आदमी आता नहीं हमारे शो मे, तो हमारी बीवी ने बताया हमें अजी आप से ढंग का आदमी कौन हो सकता हैं और ऐसा बोलेंगे तो हम तुरन्तै चले जायंगे बड़े स्टॅंडर्ड वाले आदमी है हम.
होस्ट => ह्म भाई वो तो आप हैं और कच्छा तो बड़ा चमक रहा है आप का किस कंपनी से लिया,
गेस्ट=> टी के टी से लिया है
होस्ट => ये कौनसी कंपनी है हमने तो नहीं सुना कभी इसके बारे
गेस्ट=> अरे कैसी बात कर रहे हैं, रेडियो पर दस दस मिनिट पर परचार आता है इसका आप कह रहे हैं सुना नहीं औ इतना बढ़िया गाती है मेडम जी "ठूंस के ठुसन्ना, चूस के गन्ना पहनने मे आराम रामू श्यामू घनश्याम सबकी पसंद टी के टी पटरदार कच्छा " मतलब आप ने कभी सुना ही नही इसके बारे , किस दुनिया मे रहते हो भाई
होस्ट => चलिए फिर अब मैं रेडियो सुनना सुरू करने वाला हूँ , पहली बात तो आज कोई और आने वाला था और हमने आप को बुलाया भी नहीं है तो आप जाओ हम कॉल करेंगे 
गेस्ट=>अच्छा ठीक है हम चलते हैं अभी, तो कही रुकने का इंतज़ाम कराया है की नहीं अभी बस से उतरे हैं और सीधे आ गये हैं यहीं पर
होस्ट => रुकने का इंतज़ाम तो नहीं है लेकिन आप रुकेंगे क्यूँ आप को तो ज़ाना है ना शाम की बस से
गेस्ट=> अरे क्या यार मज़ाक करते हो हमेशा अभी कहे हो की काल करेंगे और कह रहे हो जाना मतलब एक दम से बाकलोल हो का
होस्ट => अरे आप समझे नहीं हमारा मतलब हम आप को कॉल करेंगे फोन करेंगे फोन
गेस्ट=> अच्छा तो ऐसे बोलॉगे इंग्लीश मे तो समझ मे आएगा ना ऐसा है ना हमारी हिन्दी थोड़ी कमजोर है ठीक है फिर चलते हैं
का  यार कैसे आदमी हो तुम कुछ आप के मम्मी पापा मॅनर सिखाएं है आप को
होस्ट=> अब क्या हो गया सर अब क्या किया मैने
 गेस्ट=> यही तो प्रोबिलेम है साहब आप कुछ करते ही नहीं है एक आदमी इतनी दूर से आया है और जा रहा है और इतना भी मॅनर नहीं है की कम से कम नाम ही पूंछ ले
होस्ट=>अच्छा चलो बता दो क्या नाम है तुम्हारा
गेस्ट=> अब ऐसे थोडई बता देंगे इतनी आसानी से, हम आप को अपनी बीवी का नाम बताएँगे और आप बातएँगे की हमारा क्या नाम है हमारी बीवी का नाम है चंद्र मुखी अब बोलो का नाम है हमारा सोचो सोंचो इत्मीनान से सोंचो जाओ बॉल जीवन घुट्टी पी के आओ और इत्मीनान से सोंचो
होस्ट=> देखिए मैं इतना जानकार नहीं हूँ बस आप जल्दी से अपना नाम बताओ और जाओ
गेस्ट=> बहुत जल्दी है तुमको , बीवी ठीक नहीं है का तुम्हारी
होस्ट => ये क्या बदतमीज़ी है मेरी बीवी ठीक नहीं है बीवी कहा से आ गई बीच मे
गेस्ट=>, अरे हमरा कहने का मतलब घर ही तो जाना है आपको तो बीवी बीमार है का आपकी
होस्ट=> नहीं बीमार नहीं है
गेस्ट=> फिर काहे जल्दी मे है का भागने वाली है का अच्छा चलिए हम बता देते है नाम हमरा नाम है सूरजमुखी अच्छा आप के बीवी का नाम का है
होस्ट=> उस से तुम्हे क्या मतलब मैंक्यूँ बताने लगा अपनी बीवी का नाम तुमको
गेस्ट=> अरे हम भगा के नही ले जायंगे ना आप की बीवी को नाम ही तो पूछा है आप का नाम बताएँगे हम आपको आप तो बता नहीं पाएहमारा
होस्ट=>  बीवी का नाम है विद्या बताओ अब हमारा नाम क्या है
गेस्ट=> विद्या आपकी बीवी का नाम है विद्या विद्या वी ई डी आइ ए ( उंगली पर कुछ गिनने लगा ) ह्म जान गये क्या नाम है आपका कहो तो बता दे
होस्ट=> हाँ बताओ
गेस्ट=>आप हो सूरज चतुर्वेदी ,  देखे आप हम बता दिए ना नाम
होस्ट=> कैसे किया ये तुमने ये क्या जोड़ा हाथ पर और बस बता दिया नाम हमारा बड़े कमाल के आदमी हो तुम यार बताओ ना कैसे किया ये?
गेस्ट=> ऐसा करो हमारे साथ चलो आप साथ मे बकरी चराएँगे यहाँ कहा जिंदगी बर्बाद कर रहे हो अपनी अरे कौन है डाइरेक्टर कहा से ए आदमी पकड़ के लाए हो भाई तुम लोग बिल्कुलई से बेवकूफ़ है , अरे हम बाहर से आ रहे थे तो हम पूछ लिए थे की नाम का है होस्ट का

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Friday, July 1, 2011

रामू


[ पहला प्रयास  बच्चों के लिए एक कहानी लिखने का ]


रामू अपने गाँव का एक अकेला नौजवान था जो कोई काम धंधा नहीं करता था | गाँव में किसी को भी उसकी उम्र का अंदाज़ा नहीं था | बूढ़े बुजुर्ग बताते थे कि २५ से ३० साल का होगा |रामू का रंग कालापन लिए हुए साँवला था |

      कोई नहीं जानता था कि  रामू इस गाँव में कब और कैसे आया | लोग उसकी तरफ देखना भी पसंद नहीं करते थे , अगर देखते भी थे तो नफरत भरी नज़रों से || रामू ने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था लेकिन पता नहीं क्यों गाँव वाले उसे पसंद नहीं करते थे | रामू से जब भी हो सकता था वह किसी किसी तरीके से गाँव वालों की  मदद करता रहता था|
    हाँ , लेकिन गाँव के बच्चे सुबह उठने से लेकर शाम  को सोने तक हमेशा उसको घेरे रहते थे | बच्चे ही किसी को बताते ही रामू कि बच्चे उसे इतना पसंद क्यूँ करते थे | एक दिन रामू सुबह सुबह उठा | अभी रात का अँधेरा पूरी तरह से छंटा भी नहीं था और वह कहीं चला गया |
                                                          गाँव के लोग उठे और अपने अपने रोजमर्रा के कामों में लग गए | दोपहर बीत गयी , धीरे धीरे शाम हो गयी | बच्चों को उदास  देखकर गाँव वालों को महसूस हुआ " कुछ तो बात है "|धीरे धीरे गाँव भर में यह खबर फ़ैल गयी कि रामू गाँव में नहीं है |
किसी को क्या पड़ी थी कि वह , ये खोज खबर करता कि  रामू कहाँ गया , जिन्दा भी है या नहीं ?
                 
गाँव के बच्चे धीरे धीरे और उदास  रहने लगे बच्चो ने खेलना कूदना भी बंद कर दिया |
दिन बीतते गए लेकिन रामू वापस नहीं आया | गाँव के लोग चाहते तो नहीं थे लेकिन गाँव के बच्चों का मन रखने के लिए लोगों ने पंचायत बैठाई और इस नतीजे पर पहुंचे कि बच्चों को दिलासा  दिया जाए कि रामू शहर में  कमाने गया है और कुछ ही दिनों में वापस  जाएगा|
                बच्चों की उदासी थोड़ी बहुत कम हो गयी लेकिन अब भी वे सब  रामू को भूल नहीं पाए थे और उसका रास्ता देखते रहते थे |
एक दिन दोपहर का समय था | लोग अपने रोजमर्रा के कामो में लगे थे |  
 गाँव की एक अकेली और पुरानी पगडण्डी पर कोई पतला और काफी ऊँचा साया आता हुआ दिखाई दिया | बच्चे साए की तरफ दौड़े | गाँव वाले डर गए, ये क्या है , ये कौन है |
ज्यादा नज़दीक आने पर गाँव वालों ने देखा "अरे ये तो रामू है "
रामू ने जोकर जैसे कपडे पहने हुए थे और दोनों पैरों में बड़े बड़े बांस बांधकर चला रहा था | देखने से लगता था कि रामू के पैर कई मीटर लम्बे हो गए थे | ऊँचा इतना कि वो कई पेड़ों से ऊपर था ,गाँव वाले रामू के बदले हुए रूप  को देखकर जल भुन गए | लेकिन गाँव के बच्चे  बहुत खुश थे और रामू के पैरों से लिपट कर चिल्लाने लगे 
"हमारा रामू गया "   
"हमारा रामू गया "  
गाँव के लोग फिर अपने कामों में लग गए , अब रोज रोज रामू का यही काम था कि वो दो तीन बच्चों को अपने कन्धों पर बैठा लेता और शाम तक उन्हें अपनी लम्बी लम्बी टांगों से चलकर काफी ऊंचाई से बाग़ बगीचों  की  शैर कराता
जैसे जैसे बच्चे खुश होते रामू के पैर और लम्बे होते जाते कभी कभी तो रामू इतना ऊँचा हो जाता की जमीन से सिर्फ उसके पैर दिखाई  देते , मालूम पड़ता की रामू का शरीर बादलों में कहीं खो गया है ,
जब भी बच्चे गाँव वालों को इस बारे में बताते तो उन्हें विश्वाश  नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है |
हर जगह कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे दूसरों की ख़ुशी देखी नहीं जाती और ऐसे ही कुछ लोग इस गाँव में भी मौजूद थे | एक रात चुपके से ,रामू से इर्ष्या करने  वाले कुछ लोगों ने मिलकर रामू के दोनों लम्बे लम्बे बासों को , जो कि रामू के पैर थे और बच्चो की खुशी ,काटकर कमजोर कर दिया  |रामू  रोज की तरह अगली  सुबह दो तीन बच्चों को कन्धों पर बैठाकर सैर  के लिए निकल पड़ा रामू अपनी ही धुन में मस्त होकर चलता गया बच्चे खुश होते रहे और रामू की ऊंचाई बढती गयी क्यूंकि बांस कमजोर कर दिए गए थे अचानक टूट गए |
                                           रामू बच्चों के साथ जमीन पर गिर गया | उसकी दोनों टाँगे टूट गयी लेकिन उसने बच्चों को कुछ नहीं होने दिया | जिन लोगों ने रामू के पैर काटे थे वो खुश हुए की अब रामू क्या करेगा , अब तो रामू की जिंदगी से सारी ख़ुशी गायब हो जायेगी
लेकिन अब भी सुबह से शाम तक बच्चे रामू के साथ ही रहते उसके साथ खेलते , उसके साथ हँसते , उसे सहारा देते |
                रामू खुश था, बच्चे भी खुश थे ,गाँव वाले अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे ||